श्री अरविंद घोष (Arvind Ghosh)(1872-1950): श्री अरविंद घोष आधुनिक भारत के एक महान विचारक व दार्शनिक थे। वह स्वतंत्रता आंदोलन के भी एक महान व प्रसिद्ध नेता थे जो बाद में एक योगी व रहस्यपूर्ण व्यक्ति बन गये थे। श्री अरविंद घोष का जन्म 15 अगस्त, 1872 को पश्चिम बंगाल के कोन नगर में हुआ था। दार्जलिंग के लोरियो कान्वेंट स्कूल से अपनी शिक्षा समाप्त करने के बाद वह उच्चतर शिक्षा प्राप्त करने के लिए इंग्लैंड चले गये। उन्होंने लंदन के सेंटपॉल स्कूल में 1884 में प्रवेश लिया।

Arvind Ghosh की शिक्षा
Arvind Ghosh सीनियर क्लासिकल स्कॉलरशिप प्राप्त करने के बाद 1890 में उन्होंने किंग कालेज कैंब्रिज में दाखिला लिया। भारत वापस आने के बाद उन्होंने संस्कृत और भारतीय संस्कृति तथा धर्म व दर्शन का गहन अध्ययन किया और उसके बाद 1910 तक बंगाल कांग्रेस में रहते हुए देश को आजादी दिलाने के लिए तथा ब्रिटिश सरकार को जड़मूल से नष्ट कर देश से बाहर खदेड़ने के लिए पूरे भारतवासियों से आग्रह किया कि विदेशी सामानों तथा ब्रिटिश सरकार द्वारा चलायी गयी किसी भी योजना या अभियान का जमकर विरोध व बहिष्कार करें। उनकी इस असीम सक्रियता को देखते हुए ब्रिटिश सरकार ने 1910 में उन्हें अलीपुर जेल में एकवर्ष के लिए बंद कर दिया।
अपनी जेल यात्रा के दौरान श्री अरविंद घोष को आध्यात्मिक रहस्यमय अनुभव प्राप्त हुआ जो कि उनके ऊपर गहरा व गंभीर प्रभाव छोड़ गया। उसके बाद उन्होंने एक योगी की तरह जिंदगी जीने के लिए जीवन शैली में परिवर्तन कर लिया तथा तमिलनाडु के पाण्डिचेरी नामक स्थान पर निवास करने के लिए चले गये और वहां पर एक आश्रम की स्थापना की। अरविंद का दर्शन सिद्धांत एक माता के सदृश है जो कि हर तरह से सहनशील होती है।
अवली को एक सार्वभौमिक आध्यात्मिक प्रतीक के रूप में 1968 में स्थापित किया गया। Arvind Ghosh ने एक दार्शनिक पत्रिका द आर्य का प्रकाशन शुरू किया तथा उनकी प्रसिद्ध पुस्तकें है-द आइडियल ऑफ ह्यूमन यूनिटी, लिसिस ऑफ योग व द लाइफ डिवाइन आदि।श्री अरविंद के राजनीतिक व दर्शन के चिंतन को दो अलग-अलग धारा के रूप में नहीं बांटा जा सकता है क्योंकि उनके सभी राजनैतिक विका आधार आध्यात्मिक व नैतिक सिद्धांत के ऊपर टिका हुआ है। जिसके अंतर्गत उनके दर्शन का चिंतन रूप छिपा हुआ है।
इस प्रकार अरविंद(Arvind Ghosh )का राष्ट्रवाद साधारण रूप में केवल एक राजनैतिक योजना या बौद्धिक विचार को ही समाहित नहीं किये हुए है बल्कि ईश्वर प्रदत्त एक धर्म का आध्यात्मिक प्रयास भी है राष्ट्रवाद एक सक्रिय धर्म का रूप है जिसका मुख्य प्रधान हथियार आध्यात्मिक है। अरविंद का विश्वास था कि भारत के राष्ट्रीय आंदोलन को एक दिन अवश्य सफलता प्राप्त होगी। अतः उनकी नजर में स्वराज केवल राजनैतिक स्वतंत्रता ही नहीं है।
स्वराज का अभिप्राय है – आध्यात्मिक मार्ग दर्शन के अंतर्गत पूरी मानवता को समाहित कर लेना।राष्ट्रीय उत्पीड़न को समाप्त करने के लिए अरविंद ने सत्याग्रह आंदोलन के साथ ही साथ सक्रिय रूप से शक्ति का भी समर्थन किया। एक राष्ट्र के लिए राजनैतिक स्वतंत्रता का महत्व होता है तथा राष्ट्र की सुरक्षा हर कीमत पर करनी चाहिये, चाहे उसके लिए कोई भी उचित माध्यम अपनाना पड़े । Arvind Ghosh
श्री अरविंद घोष इस बात से पूरी तरह सहमत थे कि राष्ट्र की प्रतिष्ठा व शान के लिए प्रत्येक व्यक्ति को जी-जान से अपना जीवन पूर्णतया समर्पित करना चाहिए। केवल राष्ट्र के साथ स्वयं अपनी पहचान बनाकर ही कोई व्यक्ति किसी तरह की उपलब्धि प्राप्त कर सकता है ।
Arvind Ghosh दृष्टिकोण में मात्र व्यक्तियों का समूह ही राष्ट्र नहीं है। राष्ट्र एक संगठन के रूप में है जैसा कि एक व्यक्ति का अपना अस्तित्व है, उसी तरह राष्ट्र का भी अपना अस्तित्व है। समाज की गतिविधियां एक व्यक्ति को मानवीय आदर्श प्राप्त करने में मदद करती है। इस तरह समाज का आदर्श मानवीय अस्तित्व के धरातल पर टिका हुआ है। महात्मा गांधी और खान अब्दुल गफ्फार खान | Khan Abdul Gaffar Khan को भी पढ़ कर जान सकते हैं।
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