How many karak in sanskrit | संस्कृत में कारक कितने होते हैं । संस्कृत में आठ कारक और आठ विभक्ति होते हैं, जिनका वर्णन विस्तार से नीचे दिया गया है ।

How many karak in sanskrit
विभक्ति | कारक | चिह्न |
प्रथमा | कर्ता | ने |
द्वितीया | कर्म | को |
तृतीया | करण | से , द्वारा (सहायता) |
चतुर्थी | संप्रदान | के लिए (को) |
पंचमी | अपादान | से (अलग होना) |
षष्टी | सम्बन्ध | का, की, के, रा, री, रे |
सप्तमी | अधिकरण | में , पर |
सम्बोधन | सम्बोधन | हे , ओ, अरे, ए आदि |
1. कर्ता कारक (प्रथमा विभक्ति)
क्रिया करने वाले को कर्ता कहते हैं । कर्त्रिवाच्य के कर्ता में प्रथमा विभक्ति होती है। इसका पहचान चिह्न (ने) है ।
जैसे – रामः लिखति।
2. कर्म कारक ( द्वितीया विभक्ति)
किसी वाक्य में प्रयोग किए गए पदार्थों में से कर्ता जिसको सबसे अधिक चाहता है, उसे कर्म कहते हैं, अर्थात् जिस पर क्रिया का फल समाप्त होता है या पड़ता है तो उसे कर्म कहते हैं। कर्म में द्वितीया विभक्ति होती है। इसका पहचान चिह्न ‘को’ होता है। यह कहीं कहीं वाक्य में छिपा भी रहता है ।
जैसे– 1.अहं सूर्यं पश्यामि । (मैं सूर्य को देखता हूँ)
2. शिक्षकः छात्रान् ताडयति । ( अध्यापक छात्रों को पीटता है ,)
3. करण कारक (तृतीया विभक्ति)
जिसकी सहायता से कर्ता अपना कार्य पूरा करता है, उसे करण कहते हैं। करण में तृतीया विभक्ति होती है। इसका पहचान चिह्न ‘से या द्वारा’ होता है।
जैसे – 1. बालकः हस्ताभ्याम् लिखति । (लड़का हाथ से लिखता है)
2. रामः बाणेन बालिन् अहन् । ( राम ने बाण से बाली को मारा )
How many karak in sanskrit
4. संप्रदान कारक (चतुर्थी विभक्ति)
जिसे कोई वस्तु दी जाती है या जिसके लिए कोई कार्य किया जाता है, उसे संप्रदान कहते हैं। संप्रदान कारक में चतुर्थी विभक्ति होती है। इसका पहचान चिह्न‘ के लिए ’ अथवा ‘ को’ है ।
जैसे – राजा ब्राह्मणाय गां ददाति। (राजा ब्राह्मण को गाय देता है )
How many karak in sanskrit
5. अपादान कारक (पंचमी विभक्ति)
जिसमें किसी वस्तु का प्रत्यक्ष अथवा कल्पित रूप से अलग होना प्रकट होता है तो उसे अपादान कारक कहते हैं। अपादान में पंचमी विभक्ति होती है। इसका पहचान चिह्न ‘से ’ है ।
जैसे – बृक्षात् पत्राणि पतन्ति। (पेड़ से पत्तियां गिरती हैं)
छात्रा गृहात् आगच्छन्ति। (छात्र घर से आते हैं)
How many karak in sanskrit | संस्कृत में कारक कितने होते हैं
6. संबंध कारक (षष्टी विभक्ति)
जब किसी संज्ञा या सर्वनाम शब्द का दूसरे शब्द से संबंध प्रकट होता है तो उसे संबंध कारक कहते हैं। संबंध कारक में षष्टी विभक्ति होती है। इसका पहचान चिह्न ‘का , की , के, रा, री, रे,ना, नी, ने है।
जैसे – कूपस्य जलं शीतलं भवति । ( कुएं का पानी ठंडा होता है ।)
तव गृह कुत्र अस्ति ? ( तुम्हारा घर कहां है?)
स्वस्थ्य वचनं पालय। (अपने वचन का पालन करो)
7. अधिकरण कारक ( सप्तमी विभक्ति)
जिस स्थान या वस्तु में कोई कार्य होता है उसे अधिकरण कारक कहते हैं। अधिकरण कारक में सप्तमी विभक्ति होती है। इसका पहचान चिह्न में या पर है ।
जैसे – सरोवरे कमलानि विकसन्ति। (तालाब में कमल खिलते हैं।)
अस्मिन् समये वयं पठिष्यामः। (इस समय हम लोग पढ़ेंगे।)
अहं विद्यालये पठामि। (मैं विधालय में पढ़ता हूं।)
8. सम्बोधन कारक
जिसे पुकारा जाता है उसमे संबोधन होता है । सम्बोधन कारक में प्रथमा विभक्ति होती है। इसका पहचान चिह्न हे, ओ, अरे, ए होता है।
जैसे– भो पुत्र ! त्वं कुत्र गच्छति । (अरे बेटा ! तुम कहां जा रहे हो )
How many karak in sanskrit | संस्कृत में कारक कितने होते हैं ? के बारे में जानकारी मिल ही गई होगी । आशा है आप को यह पोस्ट अच्छी लगी होगी । कृपया कमेंट करके बताएं।
धनयबाद
हिंदी में कारक के बारे में पढ़ सकते हैं । How many karak in sanskrit | संस्कृत में कारक कितने होते हैं
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