Khan Abdul Gaffar Khan (1890-1988 ): अब्दुल गफ्फार खान का जन्म एक पठान परिवार में 1890 में गांव उत्तमैजी (अब पाकिस्तान में है) में हुआ था। उनकी प्राथमिक शिक्षा पेशावर में हुई थी। उसके बाद वह पढ़ने के लिए अलीगढ़ भेजे गये जहां उनको बहुत से शिक्षाशास्त्रियों व राष्ट्रवादियों से मिलने का एक सुनहरा अवसर प्राप्त हुआ। उनमें से मुख्य थे उनके प्रधानाध्यापक माननीय रेवरेंडविग्रम, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू तथा अब्दुल कलाम आजाद आदि ।

खान अब्दुल गफ्फार खान (Khan Abdul Gaffar Khan) का राजनीतिक जीवन
अब्दुल गफ्फार खान का महत्वपूर्ण राजनैतिक जीवन 1919 के दौरान शुरू हुआ जब उन्होंने “रोलट एक्ट” के विरोध में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए “खिलाफत आंदोलन” में भाग लेना शुरू किया। उसके बाद उन्होंने 1920 से लेकर 1947 तक कांग्रेस के सभी कार्यकलापों में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। उन्होंने सभी बड़े राजनैतिक आंदोलनों में सक्रिय रूप से भाग लिया जैसे—असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन, नमक सत्याग्रह तथा भारत छोड़ो आंदोलन 1942 आदि।
अब्दुल गफ्फार खान कई वर्षों तक कांग्रेस की कार्यकारी समिति के एक अडिग कार्यकर्ता के रूप में कार्य करते रहे पर उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष पद के निमंत्रण को सदैव अस्वीकार किया। इस बीच वह कई बार गिरफ्तार हुए तथा अपने जीवन के 14 वर्ष उन्होंने जेल में बिताये।
महात्मा गांधी के साथ उनके प्रतिछाया स्वरूप रहते-रहते उनके विचार कार्यकलाप हूबहू गांधी तुल्य हो गये थे। जिसके चलते वे 1920 से “सीमांत गांधी” के रूप में पुकारे जाने लगे थे। 1939 में सीमांत गांधी द्वितीय विश्व युद्ध की नीतियों को अस्वीकार करते हुए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से त्यागपत्र दे दिया था। वह 1940 में पुनः कांग्रेस में शामिल हुए, जब युद्ध नीति में संशोधन किया गया।
Khan Abdul Gaffar Khan एक उत्कट स्वतंत्रता सेनानी के साथ-साथ एक समर्पित समाज सुधारक भी थे। सामाजिक पुनरुत्थान की आवश्यकता को महसूस करते हुए उन्होंने गांधी के सिद्धांतों को सर्वप्रथम स्वयं अपने जीवन में उतार तथा उसका प्रचार करते रहे। वह दृढ़ता के साथ अहिंसा व खादी संस्कृति में विश्वास करते थे। वह ग्रामीण कुटीर उद्योगों तथा महिलाओं व टवाये गये लोगों के उत्थान हेतु पूर्ण रूप से जागृत थे। Khan Abdul Gaffar Khan
उन्होंने सामाजिक परिवर्तन के सकारात्मक पहलू व उद्देश्यों को कार्यान्वित करने हेतु “खुदाई खिदमतगार” (सर्वेट्स ऑफ गॉड) नामक संस्था की स्थापना 1929 में की। यह संस्था “रेड शर्ट” के नाम से भी जानी गयी। उनकी उत्साहपूर्ण सामाजिक परिपक्वता को देखते हुए “फखार-ए-अफगान” उपाधि से भी विभूषित किया गया।Khan Abdul Gaffar Khan
उन्होंने 1940 में एक दूसरी “खुदाई खिदमतगार” संस्था की स्थापना की जिसका नाम “मकर-ई- एलाई-ई-खुदाई खिदमतगार” रखा था।सीमांत गांधी राष्ट्रीय शिक्षा नीति समर्थक थे। उन्होंने अपने प्रांत में बहुत से राष्ट्रीय स्कूलों की स्थापना की। उनमें से विशेष रूप से चर्चित रहे—उतमंजा का “आजाद हाई स्कूल” तथा अंजुमन-उल-अफगानी” । उन्होंने 1928 में पस्तो भाषा में एक मासिक पत्रिका पख्तून का संपादन किया, जो कि 1931 में बंद हो गयी। पुनः कुछ वर्ष बाद वह दस रोजा नाम से प्रकाशित होने लगी।
अब्दुल गफ्फार खान एक पवित्र मुसलमान थे तथा धर्म निरपेक्षता में विश्वास रखते थे। यह जातीय राजनीति को दण्ड स्वरूप मानते थे तथा मुस्लिम लीग द्वारा अलग पाकिस्तान राष्ट्र बनाने के सख्त विरोधी थे तथा कभी नहीं चाहते थे कि देश का बंटवारा हो ।विभाजन के बाद उन्होंने पठानों के लिए अलग “पख्तूनिस्तान” की स्थापना के लिए एक अलग संघर्ष की शुरूआत की तथा इस संबंध में पाकिस्तान सरकार उन्हें कई बार जेल में बंद करती रही।
खान अब्दुल गफ्फार खान | Khan Abdul Gaffar Khan की मृत्यु
वह देश से निर्वासन स्वरूप कई वर्ष तक अफगानिस्तान में रहे। 1969 में उन्हें “गांधी जन्म शताब्दी समारोह” में भारत में आमंत्रित किया गया। 1987 में उन्हें भारत के सर्वोच्च पुरस्कार “भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया। ठीक उसके एक वर्ष बाद 1988 में सीमांत गांधी का देहांत हो गया।Khan Abdul Gaffar Khan
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खान अब्दुल गफ्फार खान को भारत रत्न कब दिया गया ?
1987 में उन्हें भारत के सर्वोच्च पुरस्कार “भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया।
खान अब्दुल गफ्फार खान की पुण्य तिथि कब होती है?
खान अब्दुल गफ्फार खान की मृत्यु 20 जनवरी 1988 को हो गई थी, इनकी पुण्य तिथि 20 जनवरी को मनाई जाती है ।