Mahatma Gandhi history in hindi , मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म गुजरात राज्य के एक शहर पोरबंदर में 2अक्टूबर 1869 को हुआ था । इनके माता का नाम पुतली बाई तथा पिता का नाम करम चंद था । महात्मा गांधी जी के पिता पोरबंदर, राजकोट तथा बांकानेर रियासतों के दीवान रहे। इनकी प्रथमिक शिक्षा राजकोट में हुई थी तथा 1881 में इनका विवाह कस्तूरबा के साथ हुआ।

1884-85 में कुसंगतिव इन्होंने चोरी-छिपे मांस भक्षण कर लिया करते थे लेकिन इनका सत्यवादी मन इसे छिपा न सका और अपने माता-पिता के समक्ष अपने इस कृत्य के लिए क्षमायाचन कर प्रायश्चित किया अर्थात् असत्य को त्याग कर उन्होंने सत्य का अंगीकर किया।
प्रारंभिक शिक्षा
महात्मा गांधी जी 7 वर्ष की आयु में स्कूल गये। उन्होंने 1888 में हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की और उच्च शिक्षा के लिए भावनगर गये लेकिन वे वहां पर पढ़ नहीं पाये। उस समय उनके एक पारिवारिक मित्र मावजी ने गांधी जी को इंग्लैंड जाने का परामर्श दिया । गांधी जी 4 सितम्बर, 1888 को बैरिस्टर की पढ़ाई हेतु बम्बई से इंग्लैंड चले गए। Mahatma Gandhi history in hindi
आरंभ में वे एक भद्र अंग्रेज पुरुष जैसे दिखने के लिए बहुत चिन्तित थे, इसलिए उन्होंने 3 महीने तक नाच, फ्रांसीसी भाषा एवं अच्छा भाषण की कला सीखने का प्रयास किया, लेकिन इस क्षेत्र में वे असफल रहे। इस बाद उन्होंने सादगीपूर्ण जीवन व्यतीत करने, भोजन स्वयं बनाने व पढ़ाई प्रति ध्यान देना आरंभ किया।
आरम्भ में इंग्लैंड के वातावरण के अनुकूल ढलने में विफल रहे, इसके उपरांत उन्हें शराब, स्त्री तथा मांसाहार से दूर रहने के लिए अपनी माताजी को वचन दिए थे , उन्हें अपने अपने तीन वचनों की याद आई , इसके उपरांत बहुत पश्चाताप भी किए और शाकाहार को अपने जीवन का अंग बना लिया। उन्होंने ब्रह्मवादियों को अपना मित्र बनाया व श्रीमती एनी बेसेन्ट और बना • मादाम बलावत्सकी से परिचित हुए। इस प्रकार उनका झुकाव भारतीय दर्शन व धार्मिक पुस्तकों की ओर हुआ।
उन्होंने बाइबल का अध्ययन किया और एक नया अनुभव प्राप्त किया तथा वे उसके दर्शन से अत्यधिक प्रभावित हुए। उन्होंने एडविन आर्नोल्ड की पुस्तकों सांग ऑफ सिलेस्टल तथा लाइट ऑफ एशिया का गहन अध्ययन किया।
उन्होंने भागवत गीता को आध्यात्मिक कोष के रूप में देखा। भिन्न-भिन्न धर्मों व सम्प्रदायों के लोगों के सम्पर्क में जाने तथा अनेक प्रकार की धार्मिक पुस्तकें पढ़ने के बाद गांधी जी ने कहा कि उनके मन की ‘नास्तिकता रूपी रेगिस्तान’ की दीवार ढह गई है।
वे 1891 में भारत वापस आ गये। महात्मा गांधी जी के बम्बई पहुंचने के पूर्व ही उनकी माताजी का देहान्त हो गया। पिता जी का देहान्त छह वर्ष पहले हो ही गया था। भारतीय कानून का अध्ययन नहीं करने के कारण उन्हें अदालत में प्रैक्टिस करते समय परेशानी महसूस होने लगी। उसी बीच पोरबन्दर के एक व्यापारी ने उनके बड़े भाई को पत्र लिख कर प्रस्ताव दिया कि दक्षिण अफ्रीका में उनके व्यापार से संबंधित एक दीवानी मुकदमे में गांधी जी को व्यस्त कर दिया जाये। उस समय वे 24 वर्ष के भी नहीं थे।
आरंभ में वह एक वर्ष के लिए दक्षिण अफ्रीका गये लेकिन बीच-बीच में कुछ समय को छोड़कर उन्होंने 21 वर्ष (1893-1914) तक वहां निवास किया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 22 मई, 1894 को गांधी जी को सचिव पद पर मनोनीत किया। 1896 के मध्य में वे भारत आए तथा 6 महीने रुकने के बाद अपनी पत्नी व 2 बच्चों के साथ पुनः दक्षिण अफ्रीका वापस चले गये। बोर युद्ध में, यद्यपि गांधी की सच्ची सहानुभूति बोरों के साथ थी पर ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन नागरिक होने के कारण उन्होंने अंग्रेजों के पक्ष में रहने का निर्णय लिया।
गांधी जी 1901 में भारत वापस आ गये। वापस आने के कुछ दिन बाद उन्होंने कलकत्ता कांग्रेस अधिवेशन में भाग लिया। दक्षिण अफ्रीका संबंधी गांधी द्वारा प्रस्तुत संकल्प बिना किसी पूर्व सूचना के कम समय में ही सर्वसम्मति से पारित हो गया और यह जंगल की आग की तरह फैल गया, जिसे सुनकर व पढ़कर गांधी को कष्ट हुआ। शीघ्र ही वे एक भ्रमण के लिए निकल पड़े। Mahatma Gandhi history in hindi
रंगून, बनारस, आगरा, जयपुर व पालनपुट आदि की ट्रेन से तृतीय श्रेणी में यात्रा करते हुए राजकोट पहुंचे। 1902 के अन्त में वे पुनः दक्षिण अफ्रीका गए। भारत छोड़ने से पहले गांधी ने सोचा था कि ये कुछ ही महीने वहां रहेंगे पर वे पूरे 12 वर्ष तक दक्षिण अफ्रीका में रहे। सर्वप्रथम गांधी जी ने वहां पर पीढ़ी-दर-पीढ़ी प्रचलित वंशवाद के अत्याचारों के विरुद्ध सत्याग्रह आन्दोलन के माध्यम से लड़ने का प्रयास किया।
दक्षिण अफ्रीका में रहते हुए उन्होंने ‘फोनिक्स फार्म में रहने वाले समुदायों के विचारों पर एक प्रयोग किया। बाद में 1910 में उन्होंने एक ‘टॉलस्टॉय फार्म’ की स्थापना की। वहां के निवासी शाकाहारी थे और इस प्रयोग को उन्होंने अपने प्रतिदिन के कार्यकलापों में स्थान दिया। यद्यपि कोई भी संघर्ष अपने उद्देश्य प्राप्त करने में सफल नहीं हो पाया तथापि गांधी जी ने निश्चित रूप से बहुमूल्य अनुभव प्राप्त किया ।
9 जनवरी, 1915 को गांधी जी और कस्तूरबा गांधी बम्बई पहुंचे। उनके स्वागत में फिरोजशाह मेहता की अध्यक्षता में एक नागरिक अभिनन्दन की तैयारी की गई, जिसमें हर समुदाय के लोगों ने भाग लिया। Mahatma Gandhi history in hindi
1915 में ‘फीनिक्स’ व ‘टॉलस्टॉय’ फार्मों के अनुरूप उन्होंने अहमदाबाद के पास ‘कोचर्व’ में किराए के मकान में ‘सत्याग्रह आश्रम की स्थापना की, जिसे शीघ्र ही उन्होंने वहां से हटाकर साबरमती नदी के किनारे स्वयं की जमीन पर स्थापित किया। वह 16 वर्षों तक वहां रहे। स्वतन्त्रता आंदोलन के अधिकांश सक्रिय नेताओं ने अपने राजनीतिक जीवन की शिक्षा इसी आश्रम से ग्रहण की।Mahatma Gandhi history in hindi
भारत आने पर वे गोपाल कृष्ण गोखले के संपर्क में आए। जिनके विचार व चिन्तन बिल्कुल उनके चिन्तन के अनुरूप थे। लोगों के वास्तविक जीवन के बारे में जानने के लिए उन्होंने संपूर्ण भारतवर्ष का भ्रमण किया।
राजनैतिक कार्यकर्ताओं से लेकर निम्न से निम्न वर्ग के लागों से मिलने के बाद जब गांधी जी ने सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया तब सामाजिक समस्याओं को समझने के लिए उन्होंने स्वयं को व्यस्त रखा और उनका समाधान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की तरफ से नहीं बल्कि अपने तरीके से करने का प्रयास किया। किसी के जीवन परिचय के बारे जानकारी कर सकते हैं ।
प्रथम सत्याग्रह आंदोलन
1916 में लखनऊ कांग्रेस अधिवेशन के दौरान बिहार के एक किसान राजकुमार शुक्ला ने उत्तरी बिहार के चम्पारण जिले में भ्रमण हेतु निवेदन किया, जहां बटाई पर नील की खेती करने वाले किसानों पर खेतो के अंग्रेज मालिक बहुत बेदर्दी से अत्याचार कर रहे थे। चम्पारण के सत्याग्रह ने 28 लाख किसानों को प्रभावित किया। धीरे-धीरे संघर्ष ‘तिनसुखिया’ के चारों और केन्द्रीभूत हो गया क्योंकि ये एक शताब्दी से अंग्रेजों के अत्याचार को झेल रहे थे।
अंग्रेज मालिकों ने ऐसा नियम बना रखा था कि जिसके अनुसार नील की खेती का सिर्फ एक-तिहाई हिस्सा कालकारों को मिल पाता था और शेष फसलों की खेती का हिस्सा जबरदस्ती से वसूल कर लेते थे। इस प्रकार किसानों को कुछ भी फायदा नहीं रहता था। गांधी जी ने घोषणा की कि वे खेत मालिकों को शत्रु के रूप में नहीं देख रहे हैं। यह घोषणा बहुत महत्त्वपूर्ण थी।
उन्होंने सरकार को किसानों के कष्ट निवारण के लिए एक आयोग स्थापित करने के लिए बाध्य कर दिया। गांधी जी भी उस आयोग के सदस्य थे। यद्यपि स्पष्ट रूप से खेत मालिकों के किसानों के प्रति क्रूरता व उदण्डता के व्यवहार के अनेक प्रमाण व गवाह थे। तथापि गांधी जी ने घोषणा की कि अतीत में जो बीत गया सो बीत गया उससे कोई मतलब नहीं पर वर्तमान समय में वे अपनी क्रूरता व अत्याचारों को संतोषजनक ढंग से बंद कर दें। इस प्रकार वे खेत के मालिकों पर विजय प्राप्त कर सके।
उन्होंने ज्यादा क्षति पूर्ति के लिए भी हठ नहीं किया, उन्होंने कहा कि किसानों को कुल मूल्य का कम से कम 25 प्रतिशत वापिस कर दिया जाए और खेत मालिक यह गारंटी दें कि किसानों से अब जबरदस्ती वसूली नहीं की जाएगी। दोनों तरफ से एक संतोषजनक समझौता हुआ और सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि किसानों को खेत मालिकों की क्रूरता व निष्ठुर शासन से राहत की सांस मिली। Mahatma Gandhi history in hindi
गांधी ने शीघ्र ही अहमदाबाद के मिल श्रमिकों का भी प्रश्न उठाया जिनकी मजदूरी बहुत कम थी। मजदूरों को उचित मजदूरी दिलाने के संघर्ष में अनुसूइया बाई ने अपने करोड़पति भाई के खिलाफ गांधी का साथ दिया। गांधी जी ने एक हड़ताल का संचालन किया और मजदूरों में एकता हेतु अनशन किया। अन्त में, मिल मालिकों को झुकना पड़ा व इस तरह निर्णय मजदूरों के पक्ष में हुआ।
उसके बाद गांधी जी खेड़ा गये। यहां के गरीब किसान पहले ही ज्यादा करों के बोझ से दबे हुए थे और दूसरी ओर फसल बर्बाद हो जाने से अकाल से लड़ रहे थे। सरकार को मजबूरन यह घोषणा करनी पड़ी की जमीन की मालगुजारी सिर्फ वही किसान देंगे जो कि लगान देने में सक्षम होंगे। एक बार फिर सत्याग्रह आंदोलन ने किसानों को सत्ताधारियों की क्रूरता व बर्बरता से मुक्ति दिलाने में मदद की ।Mahatma Gandhi history in hindi
असहयोग आंदोलन की शुरुआत
प्रथम विश्व युद्ध में भारत के लोगों और गांधी ने ब्रिटेन का साथ इसलिए दिया कि युद्ध की समाप्ति के बाद भारत की स्वयं की सरकार बनाने में ब्रिटेन स्वीकृति दे देगा। लेकिन वास्तव में क्या घटित हुआ, भारतीयों की स्व-शासन की आशाओं के विपरीत ब्रिटिश सरकार ने 1919 में ‘रॉलेट एक्ट’ पारित करवा दिया जिसके नियम बहुत ही सख्त, कठोर व हर कदम पर रुकावट डालने वाले थे।
इस अधिनियम से लोगों में अत्यंत तनाव एवं रोष व्याप्त हो गया और इसका सबसे दर्दनाक काण्ड 13 अप्रैल, 1919 को बैसाखी के दिन जलियांवाला बाग में हुआ नरसंहार था। जिसमें जनरल डायर ने निहत्थी भीड़ पर गालियां चलाने के आदेश दिए। इस घटना में 1500 से अधिक निर्दोष भारतीय मारे गये। इस दर्दनाक घटना की जांच के लिए गठित ‘हण्टर आयोग’ द्वारा भारत के लोगों के पक्ष में रिपोर्ट देने के बावजूद उनके दुःखों पर मलहम लगाने का काम नहीं किया। Mahatma Gandhi history in hindi
यहां तक कि अंग्रेजों ने इस भयानक घटना के पश्चात पश्चाताप का एक शब्द भी नहीं बोला। उसी समय गांधी ने इस अधिनियम की खिलाफत करने के लिए निर्देश जारी कर दिए। गांधी जी ने सोचा कि यही अवसर है जब कि हिन्दुओं और मुसलमानों में एकता का सामंजस्य लाकर ‘अहसयोग आंदोलन’ के माध्यम से अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए बाध्य कर दिया जाए।
अप्रैल 1920 में गांधी जी ने बम्बई में यह घोषणा की कि यदि ‘रॉलेट अधिनियम’ वापस नहीं लिया गया तो शासकों के साथ रहना असम्भव होगा। पहली बार उन्होंने अंग्रेजों की आलोचना की यद्यपि यह केवल एक चेतावनी थी तथापि ब्रिटेन से हर तरह का सम्बन्ध तोड़ने का विचार किया गया। कुछ सप्ताह बाद 1 अगस्त, 1920 को वायसराय को लिखे एक पत्र में उन्होंने कहा कि, “मैं ब्रिटिश सरकार की न तो इज्जत कर सकता है और न ही उससे लगाव रख सकता हूं क्योंकि वे अपने किये अन्यायपूर्ण कार्यों से बचने के लिए गलतियों पर गलतियां किये जा रहे हैं।” इस पत्र के साथ ही उन्होंने असहयोग आंदोलन के माध्यम से सरकार का घेराव करना शुरू कर दिया। बहुत दिनों तक प्रतीक्षा करने के बाद भी सरकार की तरफ से न तो कोई सकारात्मक संकेत आया और न ही सरकार ने झुकने का नाम लिया।
उसी दिन राष्ट्रीय आंदोलन के प्रतिष्ठित नेता बाल गंगाधर तिलक का देहान्त ह गया। वायसराय लॉर्ड चेम्सफोर्ड ने अगस्त 1920 में असहयोग आंदोलन पर टीका-टिप्पणी करते हुए दोषारोपण किया कि, “यह आन्दोलन सबसे पूर्व लोगों को मूर्ख योजना है।” गांधी जी ने इसे हानिरहित असाधारण आन्दोलन के रूप में देखा पर आन्दोलन की बढ़ती गति को सरकार अपने हिंसात्मक तरीकों से रोक नहीं पायी।Mahatma Gandhi history in hindi
गांधी जी का असहयोग आन्दोलन का विचार साधारण लगते हुए भी तत्कालीन समय में एक बहुत ही शक्तिशाली पुकार थी। दिसम्बर 1920 के नागपुर कांग्रेस अधिवेशन में गांधी जी ने वादा किया कि यदि पूरा भारत असहयोग व अहिंसात्मक आन्दोलन के अनुरूप चल पड़ा तो 12 महीने के अन्दर भारत की अपनी सरकार होगी। गांधी जी ने इस संदेश को पूरे राष्ट्र को प्रेषित किया। उन्होंने असहयोग आंदोलन को इस रूप में चलाया कि जब तक सभी लोग इसे अपने व्यक्तिगत जीवन में उतार कर नहीं चलेंगे तब तक ‘स्वराज’ प्राप्त नहीं हो सकता। गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में रहते हुए मानवता की सेवा हेतु मिले अपने दो पुरस्कार ‘दक्षिण अफ्रीका का युद्ध पदक’ व ‘केसर-ए-हिन्द’ स्वर्ण पदक वायसराय को वापस लौटा दिए।
जनवरी 1922 में ‘बारदोली सत्याग्रह’ व एक ‘रचनात्मक योजना’ को स्थापित किया गया। लॉर्ड रीडिंग को एक सप्ताह का नोटिस दिया गया कि यदि इस बीच सरकार की ‘प्रतिरोध नीति’ में परिवर्तन नहीं किया गया तो हम वृहद स्तर पर सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू कर देंगे। 1 फरवरी, 1922 को गांधी ने बारदोली में सविनय अवज्ञा आंदोलन आरम्भ कर दिया।Mahatma Gandhi history in hindi
5 फरवरी, 1922 को प्रदर्शनकारियों का एक समूह प्रदर्शन करते हुए उत्तर प्रदेश के एक छोटे-से कस्बे चौरी-चौरा में एक पुलिस स्टेशन के सामने से गुजरा। इस प्रदर्शन में पीछे रह गये कुछ लोगों के साथ पुलिस ने गाली-गलौच की व दुव्यर्वहार किया तो उन्होंने स्वयं अपना बचाव किया। उसके बाद पुलिस ने फायरिंग करनी शुरू कर दी, तब प्रदर्शनकारियों की भीड़ उनका विरोध करने हेतु वापस आ गई। गोलियां समाप्त हो जाने के बाद पुलिस ने स्वयं को थाने के अन्दर बन्द कर लिया जिससे क्रोधित प्रदर्शनकारियों ने स्टेशन में आग लगा दी। इस घटना में 22 पुलिसकर्मी जल कर मर गए।
पूरा आंदोलन हिंसा पर उतर आया। हिंसा रोकने के लिए गांधी जी ने आन्दोलन वापस ले लिया जिससे आन्दोलनकारियों और कांग्रेसी नेताओं में निराशा छा गई। लेकिन गांधी जी ने विचार किया कि जन-समुदाय को तैयार किए बिना असहयोग आंदोलन चलाना एक बहुत बड़ी भूल होगी।
कांग्रेस की कार्यकारी समिति की बैठक गुजरात के बारदोली में 12 फरवरी को हुई, जिसमें गांधी जी की आज्ञा से असहयोग आंदोलन बन्द करने के लिए एक प्रस्ताव पारित हुआ। गांधी जी ने कांग्रेसियों को अपना समय रचनात्मक कार्यक्रमों को पूरा करने में लगाने के लिए प्रेरित किया 10 मार्च, 1922 को उन्हें गिरफ्तार कर लिए गया। सरकार ने उन पर राजद्रोह का अभियोग लगाया।
गांधी जी ने घोषणा की कि बुराई के साथ ‘असहयोग’ करना उतना ही उचित है जितना कि अच्छाई के साथ ‘सहयोग’ करना। गांधी जी को 6 वर्ष के कारावास की सजा दी गई। सितम्बर 1924 में गांधी जी ने जातीय दंगों के विरोध में दिल्ली में मौलाना मुहम्मद अली के घर में 21 दिन का उपवास रखा।
रचनात्मक कार्यक्रम
गांधी जी ने रचनात्मक कार्यक्रम करने का एक दृढ़ निश्चय किया और उसके अनुसार व्यवस्था की, जैसे- चर्खे पर सूत कातना व खादी के कपड़े बुनना, शराब नहीं पीना, छुआछूत की भावना को जड़ से समाप्त करना और हिन्दुओं व मुसलमानों को एकता के सूत्र में बांधना आदि । अपने इन विचारों को प्रचारित करने के लिए गांधी जी ने समस्त भारत का भ्रमण किया। उस समय गांधी जी के लिए सामाजिक व आर्थिक कार्यक्रम बहुत ही महत्वपूर्ण थे। Mahatma Gandhi history in hindi
गांधी जी ने महसूस किया कि समुदायों को राजनीतिक स्तर पर स्वतन्त्रता की बहुत ही आवश्यकता थी। 1928 में ‘साइमन आयोग’ का बहिष्कार किया गया। बारदोली में गांधी जी के सहयोग से सरदार वल्लभभाई पटेल के नेतृत्व में कर नहीं देने के सम्बन्ध में एक घेराव किया गया। Mahatma Gandhi history in hindi
1929 में कांग्रेस ने एक संकल्प पारित कर यह घोषणा की कि यदि वर्ष के अंत तक स्व-शासन नहीं दिया गया तो वे पूर्ण स्वतन्त्रता की मांग करेंगे। गांधी जी एक बार फिर राजनीतिक पटल पर छा गए परन्तु उन्होंने कांग्रेस का अध्यक्ष पद स्वीकार नहीं किया जवाहर लाल नेहरू अध्यक्ष बनाए गए। लाहौर कांग्रेस अधिवेशन में ‘पूर्ण स्वराज’ की मांग की घोषणा कर दी गयी। नमक सत्याग्रहः 26 जनवरी, 1930 को स्वतंत्रता की मांग हेतु तीन रंगों को प्रतीक के रूप में दर्शाया गया।Mahatma Gandhi history in hindi