Karma Par Sanskrit Shlok : कर्म पर संस्कृत में कई श्लोक हैं। इनमें से कुछ प्रमुख श्लोक इस प्रकार हैं:
- कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
अर्थ: तुम्हारा कर्तव्य कर्म करने में ही है, फलों में कभी नहीं।
- कर्मजं बुद्धियुक्ता हि फलं त्यक्त्वा मनीषिणः।
अर्थ: समत्वबुद्धि युक्त पुरुष यहां (इस जीवन में) पुण्य और पाप इन दोनों कर्मों को त्याग देता है।
- नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः।
अर्थ: तुम शास्त्र विधि से नियत किये हुए कर्तव्य-कर्म करो; क्योंकि कर्म न करने की अपेक्षा कर्म करना श्रेष्ठ है तथा कर्म न करने से तेरा शरीर-निर्वाह भी सिद्ध नहीं होगा।
- कर्मणा एव हि संसिद्धिं लभते न मनसा।
अर्थ: कर्म से ही सिद्धि प्राप्त होती है, मन से नहीं।
- कर्मणा शुभाशुभं जायते।
अर्थ: कर्म से ही शुभ और अशुभ होता है।
- कर्मैव मनुष्याणां गतिः कर्मैव बन्धनं।
अर्थ: कर्म ही मनुष्यों का गति और बन्धन है।
- कर्मण्यभिमुखो भूत्वा यथाकर्मफलं लभते।
अर्थ: कर्म में अभिमुख होकर जैसा कर्म करता है, वैसा फल प्राप्त करता है।
- कर्मणा सर्वं सिद्ध्यति।
अर्थ: कर्म से सब कुछ सिद्ध होता है।
Karma Par Sanskrit Shlok
इन श्लोकों में कर्म के महत्व को समझाया गया है। कर्म ही मनुष्य के जीवन का आधार है। कर्म से ही मनुष्य को सिद्धि प्राप्त होती है। इसलिए मनुष्य को अपने कर्मों को सही दिशा में करना चाहिए।
संस्कृत और कर्म का महत्व
संस्कृत एक ऐतिहासिक भाषा है, जो हमें प्राचीन धार्मिक, दार्शनिक और वैज्ञानिक विचारों से सम्पर्क कराती है। इसका एक महत्वपूर्ण हिस्सा कर्म की अवधारणा है।
कर्म का अर्थ
संस्कृत शब्द ‘कर्म’ का अर्थ होता है ‘आचरण’ या ‘किया हुआ काम’. यह एक भौतिक या मानसिक क्रिया कैप्चर करती है, जिसका प्रत्येक ध्यानात्मक और नैतिक परिणाम होता है।
संस्कृत श्लोकों की शिक्षा
संस्कृत श्लोक प्राचीन ग्रंथों में मिलने वाली संक्षिप्त कविताएँ होती हैं। ये श्लोक जीवन, प्रेम, धर्म, नैतिकता और कर्म के विविध पहलुओं को छूने का प्रयास करते हैं। उदाहरण के लिए, इस प्रसिद्ध श्लोक को देखें:
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥”-भगवदगीता, अध्याय 2, श्लोक 47
धारा 2: संस्कृत श्लोक और कर्म का संबंध
संस्कृत श्लोक कर्म और जीवन के नीतिगत तत्वों को व्याख्या करने में मदद करते हैं। हम चार मुख्य श्लोकों का विचार करेंगे जो कर्म की विभिन्न अवधारणाओं को हल्के में रखते हैं:
कर्म का व्यवहार
हिंदू धर्म-ग्रंथ भगवदगीता में एक श्लोक है जो कर्म के व्यवहारिक पक्ष को उजागर करता है:
“स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः॥”-भगवदगीता, अध्याय 3, श्लोक 35
कर्म और फल
कर्म और उसके फलों के बारे में अगला श्लोक इस प्रकार है:
“योगस्थः कुरु कर्माणि संगं त्यक्त्वा धनञ्जय। सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते॥”-भगवदगीता, अध्याय 2, श्लोक 48
निष्कर्ष
जीवन में कर्म के महत्व को समझने में संस्कृत श्लोक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उनके द्वारा हमें यह समझाया जाता है कि हमें अपने कर्म पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, न कि उसके परिणामों पर। यही वास्तविकता है जिसे हमें स्वीकार करना चाहिए – जीवन कर्म का नाम है। और अब आपकी बारी है – हमें अपने जीवन में कर्म का क्या महत्व है, वह साझा करने का समय है।
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