Vachya Parivartan ke Niyam कर्तृ वाच्य में वर्तमानकाल की क्रियाओ को यदि कर्मवाच्य में परिवर्तित किया जाता है तो क्रियाओ में निम्न प्रकार परिवर्तन होता है।
जैसे –
- लिखति का लिख्यते।
- गच्छामि का गम्यते।
- पठति का पठ्यते ।
वाच्य परिवर्तन के नियम को नीचे विस्तार से समझाया गया है
वाच्य परिवर्तन (Vachya Parivartan ke Niyam)
वाक्य की उस दशा को वाच्य कहा जाता है जिससे यह पता चल सके कि वाक्य के प्रयोग में कर्ता की प्रधानता है या कर्म की प्रधानता है या भाव की। अतः वाक्य के कहने की विधि को संस्कृत में वाच्य कहते हैं। वाच्य तीन प्रकार के होते हैं-
(1) कर्तृ वाच्य
(2) कर्म वाच्य
(3) भाव वाच्य
(1) कर्तृ वाच्य
कर्तृ वाच्य वाक्यों में क्रिया कर्ता के क्रिया कर्ता के पुरुष और वचन के अनुसार प्रयोग अनुसार प्रयोग होती है अर्थात् जिस वाक्य में कर्ता प्रधान हो और की जाती हो उसे कर्तृ वाच्य कहते हैं। जैसे- बालकः पत्रं लिखति । Vachya Parivartan ke Niyam
इस वाक्य में चूंकि पत्र लिखने का कार्य बालक कर रहा है इसलिए बालक कर्ता है। अतः इसमें प्रथमा विभक्ति का प्रयोग होगा। ‘बालक’ कर्ता के अनुसार विभक्ति के वचन तथा क्रिया का प्रयोग ‘लिखति’ हुआ है। कर्म ‘पत्र’ में द्वितीया विभक्ति है।
- सुरेशः पुस्तकं पठति।
- राधा गृहं गच्छति।
- वयम् आपणं गच्छामः ।
उपर्युक्त वाक्यों में क्रियाएँ – पठति, गच्छति, गच्छामः अपने कर्ता – सुरेश, राधा, वयम् के अधीन हैं। कर्ता की प्रधानता के कारण कर्ता प्रथमा विभक्ति के हैं तथा क्रियाएँ उनके पुरुष एवं वचन के अनुसार प्रयुक्त हुई हैं। कर्म में द्वितीया विभक्ति है। Vachya Parivartan ke Niyam
(2) कर्म वाच्य –
कर्म वाच्य के वाक्यों में कर्त्ता के स्थान पर कर्म की प्रधानता रहती है और क्रिया कर्म के अधीन होती है, तदनुसार कर्म में प्रथमा विभक्ति यथा कर्ता में तृतीया विभक्ति होती है। क्रिया का पुरुष और वचन कर्म के अनुसार होते हैं। यथा-
कृष्णेन कंसः हतः। | कर्तृ वाच्य | कृष्णः कंसं हतवान्। |
मया पुस्तकानि पठ्यन्ते। | कर्तृ वाच्य | अहं पुस्तकानि पठामि। |
त्वया पत्रं लिख्यते। | कर्तृ वाच्य | त्वं पत्र लिखसि। |
उक्त कर्तृवाच्य के वाक्य (1) कृष्णः कर्ता, कर्मवाच्य में तृतीया विभक्ति में प्रयुक्त हुआ है और कर्म ‘कंसः’ को कर्मवाच्य में कर्ता का स्थान दिया है। इसी प्रकार वाक्य (2) में अहं कर्ता कर्मवाच्य में तृतीया विभक्ति में ‘मया’ तथा ‘पुस्तकानि’ कर्मकारक द्वितीया विभक्ति का रूप कर्मवाच्य में ‘पुस्तकानि’ प्रथमा विभक्ति के रूप में प्रयुक्त हुआ है। वाक्य (3) में त्वं कर्ता कारक है तथा कर्मवाच्य में त्वया तृतीया विभक्ति में प्रयुक्त हुआ है और इसी वाक्य में ‘पत्र’ कर्म को कर्मवाच्य में कर्ता के रूप में प्रयोग किया है। कर्मवाच्य में क्रियाएँ कर्म के आधार पर लगाई जाती हैं। Vachya Parivartan ke Niyam
(3) भाववाच्य –
भाववाचक केवल अकर्मक धातुओं से ही होता है। इस वाच्य में भी कर्ता में तृतीया विभक्ति होती है। यथा- त्वया गम्यते। अस्माभिः अत्र पठ्यते। बालकैः सदा परिश्रमपरैः भवितव्यम्।
भाववाच्य का कर्ता किसी भी लिंग और वचन का हो, उसकी क्रिया में एकवचन ही होगा। इसमें कर्म का अभाव रहता है।
यथा-
- मया हस्यते।
- रामाभ्यां हस्यते।
- तैः पठ्यते।
उपर्युक्त वाक्यों में भाव की प्रधानता तथा कर्म का अभाव है। यहाँ तीनों कर्ता तृतीया विभक्ति (मया-एकवचन) (रामाभ्याम् द्विवचन) तथा (तैः बहुवचन) के हैं लेकिन क्रियाएँ हस्यते, पठ्यते प्रथम पुरुष एक वचन की हैं। कर्ता का कोई प्रभाव इन क्रियाओं पर नहीं है।Vachya Parivartan ke Niyam
कर्तृवाच्य से कर्मवाच्य बनाना
कर्मवाच्य की क्रिया सदैव आत्मनेपद में आती है।
कर्मवाच्य के कर्त्ता को तृतीया विभक्ति में तथा कर्म को प्रथमा विभक्ति में बदलकर रखा जाता है।
कर्म के पुरुष तथा वचन के अनुसार क्रिया का प्रयोग होता है।
कर्मवाच्य बनाने के लिए सार्वधातुक (लट्, लोट, विधिलिङ्ग, लङ्) लकारों में धातु में ‘यक्’ प्रत्यय जोड़ते हैं जिसका ‘य’ रहता है। जैसे पठ् धातु में ‘य’ जोड़कर ‘पठ्य’ बना और इसके रूप लट्लकार पठ्यते आदि, लोट् में पठ्यताम् आदि, विधि में पठ्येत आदि तथा ललकार में अपठयत् आदि रूप बनेंगे। Vachya Parivartan ke Niyam
आकारान्त धातुओं में आ, ए, ऐ, ओ, औ, का ई बनाकर रूप बनाते हैं। यथा – पा, दा, धा, भा, स्था, ह्वा एवं गा के होंगे – पी, दी, धी, भी, स्थी, ह्वी, गी से रूप बनाते हैं। जैसे- पीयते, दीयते, स्थीयते आदि।
यदि धातुओं के आदि में य, व, र आदि है तो कर्मवाच्य में ‘य’ का इ, ‘व’ का उ हो जाता है। यथा यज् से इज्यते, वस उष्यते।
जिन धातुओं के अन्त में ह्रस्व इ तथा ह्रस्व उ होता है, कर्मवाच्य में इ से ई, उ से ऊ हो जाता है। यथा जि = जीयते, चि चीयते, श्रु = श्रूयते, स्तु = स्तूयते ।
कर्मवाच्य में धातु के अन्त में आनेवाली ऋ को ‘रि’ और ‘ईर’ हो जाता है। यथा- ‘कृ’ से क्रियते, ह्वी से ह्रियते, जू से जीव तृ से तीर्यते। Vachya Parivartan ke Niyam
कर्तृवाच्य से भाववाच्य बनाना
भाववाच्य में क्रिया आत्मनेपद में आती है।
कर्त्ता में तृतीया विभक्ति तथा क्रिया सदैव लट् लकार प्रथम पुरुष एक वचन की ही प्रयुक्त होती है।
सार्वधातुक लकारों में धातु में ‘यक्’ प्रत्यय का प्रयोग होता है।
भाववाच्य में परिवर्तन को अन्य नियम तो प्रायः कर्मवाच्य परिवर्तन जैसे हैं लेकिन विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए। क्रिया आधार पर वाक्य को दो प्रकार से बदलते हैं:
(1) सकर्मक क्रिया होने पर कर्तृवाच्य को कर्मवाच्य में ही बदला जा सकता है।
(2) अकर्मक क्रिया होने पर कर्तृवाच्य केवल भाववाच्य में परिवर्तित होगा।
सकर्मक क्रिया का उदाहरण – बालकः पत्रं लिखति = पत्रं बालकेन लिख्यते।
अकर्मक क्रिया का उदाहरण – अहं गच्छामि = मया गम्यते। Vachya Parivartan ke Niyam sanskrit.motivenews.net digitallycamera.com
Sanskrit Nibandh Mam Priya Utsav | मम् प्रिय उत्सव पर संस्कृत में निबंध
👉देवतात्मा हिमालयः का संस्कृत में निबंध | Click Here |
👉पर्यायवाची शब्द | Click Here |
👉होलिकोत्सवः का संस्कृत में निबंध | Click Here |
👉तीर्थराज प्रयागः का संस्कृत में निबंध | Click Here |
👉विद्याधनम् सर्व धनं प्रधानम् का संस्कृत में निबंध | Click Here |
👉संस्कृत में सभी फलों के नाम | Click Here |
👉प्रत्यय किसे कहते हैं , परिभाषा, प्रकार और भेद उदाहरण सहित | Click Here |
👉शब्द रूप संस्कृत में | Click Here |
👉संस्कृत में निबंध कैसे लिखें | Click Here |
👉इसे भी पढ़ें | Click Here |
👉लहसन खाने के फायदे | क्लिक करें |