अलंकार | Alankar

Alankar :अलंकार दो शब्दों से मिलकर बना होता है – अलम + कार। यहाँ पर अलम का अर्थ होता है ‘ आभूषण।’ उसकी प्रवर्ती के कारण ही अलंकारों को जन्म दिया गया है। जिस प्रकार आभूषण से नारी का लावण्य बढ़ जाता है, उसी प्रकार अलंकार से कविता की शोभा बढ़ जाती है। शब्द तथा अर्थ की जिस विशेषता से काव्य का शृंगार होता है उसे ही अलंकार कहते हैं। अथार्त जो शब्द काव्य की शोभा को बढ़ाते हैं उसे अलंकार कहते हैं।

Alankar

Alankar (अलंकार)

 ‘अलंकरोति इति अलंकारः’ (जो अलंकृत करता है, वही अलंकार है।) भारतीय साहित्य में अनुप्रास, उपमा, रूपक, अनन्वय, यमक, श्लेष, उत्प्रेक्षा, संदेह, अतिशयोक्ति, वक्रोक्ति आदि प्रमुख अलंकार हैं। इसके अलावा अन्य अलंकार भी हैं।

1. उपमा अलंकार

परिभाषा –

उपमान और उपमेय के प्रस्फुट और मनोरम साम्य (सादृश्य) को उपमा कहते हैं। “प्रस्फुट सुन्दरं साम्यम् उपमा।’

उदाहरण-

वागर्थाविव सम्पृक्तौ वागर्थप्रतिपत्तये ।

जगतः पितरौ वन्दे पार्वतीपरमेश्वरौ ।।
स्पष्टीकरण –

इस श्लोक में ‘पार्वती-परमेश्वरौ’ उपमेय है, ‘वागर्थी’ उपमान है, ‘सम्पृक्ती’ साधारण धर्म है और ‘इव’ उपमावाचक शब्द है। चूंकि यहाँ उपमान और उपमेय में सम्पृक्ति का सादृश्य दिखाया गया है, अतः यहाँ उपमा अलंकार है।Alankar

अन्य उदाहरण

(1) स्वप्नेषु समरेऽपि त्वां विजयश्रीर्न मुंचति ।

प्रभाव प्रभवं कान्तं स्वाधीन पतिका यथा।

यहाँ पर ‘स्वाधीन पतिका’ उपमान है। ‘विजयश्री’ उपमेय है, ‘न मुञ्चति’ साधारण धर्म है तथा ‘यथा’ उपमावाचक शब्द है,इस प्रकार यहाँ पूर्णोपमा है।

2. मधुरः सुधावदधरः पल्लवतुल्योऽतिपेलवः पाणिः।

चकितमृगलोचनाभ्यां सदृशी चपले न लोचने तस्याः ।।

‘मधुरः सुधावद् अधरः’ में ‘अधर’ उपमेय, ‘सुधा’ उपमान ‘मधुरता’ साधारण धर्म तथा ‘वत्’ वाचक शब्द है। ‘पल्लवतुल्योऽतिपेलवः पाणिः’ में ‘पाणि’ उपमेय, ‘पल्लव’ उपमान, ‘अतिपेलवः’ साधारण धर्म तथा ‘तुल्यं’ वाचक शब्द है। इसी प्रकार ‘चकित मृगलोचनाभ्यां सदृशी चलपे च लोचने, में लोचन उपमेय, ‘चकित मृग के लोचन’ उपमान, ‘चपलता’ साधारण धर्म तथा ‘सदृश’ उपमा वाचक शब्द है। इस प्रकार यहाँ पूर्णोपमा अलंकार है। Alankar

2. रूपक अलंकार

परिभाषा –

जहाँ उपमेय और उपमान में अभेद प्रदर्शित किया जाय वहाँ रूपक अलंकार होता है। ‘तद्रूपकमभेदो य उपमानोपमेययोः ।’

उदाहरण

पर्याप्तपुष्पस्तवकस्तनाभ्यः स्फुरत्प्रवालोष्ठमनोहराभ्यः । लतावधूभ्यस्तरवोऽप्यवापुः विनम्रशाखाभुजबन्धनाति ।।

स्पष्टीकरण

लताओं, पुष्पस्तवकों और किसलयों में अत्यन्त भिन्न पदार्थ वधू, उरोज और ओष्ठ का अभेद आरोप किया गया है, अतः यहाँ रूपक अलंकार है।

अन्य उदाहरण

किसलयकरैर्लतानां कर कमलैः कामिनां मनो जयति।

नलिनीनां कमलमुखैर्मुखन्दुभिर्योषितां मदनः ।।

यहाँ उपमान और उपमेय में साभ्य दिखाते हुए किसलय में करत्व, कर में कमलत्व, कमल में मुखत्व और मुख में चन्द्रत्व का अभेद आरोप किया गया है, अतः यहाँ रूपक अलंकार है। Alankar

Kri Dhatu Roop | कृ (करना )धातु रूप : All LakarDigitallycamera.com

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