Shlok ok Sanskrit Every Child Should Know
Shlokas of Sanskrit with Hindi meaning– हमारे प्राचीन ज्ञान के भंडार है , ये संस्कृत के श्लोक बच्चों को जीवन के महत्वपूर्ण मूल्यों को सीखने के लिए एक बहुत अच्छा माध्यम भी हैं । संस्कृत के इन श्लोक को पढ़ने और समझने के बाद बच्चे भारतीय संस्कृति एवं परंपराओं से जुड़ेगे ही नहीं बल्कि उनके अंदर सच्चाई ईमानदारी और सहानुभूति जैसे गुणों का विकास भी होगा। 10 महत्वपूर्ण संस्कृत श्लोक दिए गए हैं जो बच्चों को सिखाए जा सकते हैं। ये श्लोक नैतिकता, भक्ति और जीवन के मूल सिद्धांतों को सिखाते हैं:
1. सत्य और धर्म
सत्यमेव जयते नानृतम्।
सत्येन पन्था विततो देवयानः।
अर्थ: सत्य की ही हमेशा विजय होती है, असत्य की नहीं। सत्य का मार्ग ही देवताओं का मार्ग है।
2. माता-पिता और गुरु का महत्व
मातृदेवो भव। पितृदेवो भव। आचार्यदेवो भव। अतिथिदेवो भव।।
अर्थ: माता, पिता, आचार्य और अतिथि को देवता के समान मानो।
3. विद्या का महत्त्व
विद्या ददाति विनयं, विनयाद् याति पात्रताम्।
पात्रत्वात् धनमाप्नोति, धनात् धर्मं ततः सुखम्।
अर्थ : विद्या विनय देती है, विनय से पात्रता आती है, पात्रता से धन की प्राप्ति होती है, धन से धर्म और धर्म से सुख प्राप्त होता है। इसका मतलब यह हुआ कि विद्या ही सभी जीवन के सुखों को प्राप्त करने का मूल आधार है ।
4. सदैव अच्छा आचरण करें
असतो मा सद्गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय।
मृत्योर्मा अमृतं गमय। ऊं शांति: शांति: शांति: ।।
अर्थ: असत्य से सत्य की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर और मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो।
5. परोपकार का महत्त्व
परोपकाराय फलन्ति वृक्षाः, परोपकाराय वहन्ति नद्यः।
परोपकाराय दुहन्ति गावः, परोपकाराय इदं शरीरम्।।
अर्थ: वृक्ष फल दूसरों के लिए देते हैं, नदियाँ दूसरों के लिए बहती हैं, गायें दूसरों के लिए दूध देती हैं, और हमारा शरीर भी परोपकार के लिए है।
6. कर्म का महत्त्व
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।
अर्थ: तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, फल पर नहीं। इसलिए कर्म करो, लेकिन फल की चिंता मत करो।
7. माता-पिता की स्तुति
त्वमेव माता च पिता त्वमेव। त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव। त्वमेव सर्वं मम देवदेव।।
अर्थ: हे ईश्वर, आप ही मेरे माता, पिता, बंधु, मित्र, विद्या, धन और सब कुछ हैं।
8. समय का सदुपयोग
क्षणशः कणशश्चैव विद्यामर्थं च साधयेत्।
क्षणे नष्टे कुतो विद्या, कणे नष्टे कुतो धनम्।।
अर्थ: क्षण-क्षण और कण-कण से ही विद्या और धन प्राप्त होता है। एक क्षण या कण के नष्ट होने पर विद्या या धन नहीं मिल सकता।
9. आत्मनिर्भरता
उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुः आत्मैव रिपुरात्मनः।।
अर्थ: मनुष्य को स्वयं अपनी सहायता करनी चाहिए। वह खुद अपना मित्र भी है और शत्रु भी।
10. सभी के कल्याण की प्रार्थना
सर्वे भवन्तु सुखिनः। सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चित् दुःखभाग्भवेत्।।
अर्थ: सभी सुखी रहें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी शुभ देखें, और कोई भी दुःख का भागी न हो।
ये श्लोक सरल, सार्थक और बच्चों के जीवन को सकारात्मक दिशा देने वाले हैं। बच्चों को इनके अर्थ और भाव समझाकर याद कराना श्रेष्ठ होगा। धेनु पर निबंध संस्कृत में
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