जीवन पर संस्कृत श्लोक | Sanskrit Shlokas On Life

Sanskrit Shlokas On Life

संस्कृत श्लोकों का संग्रह विस्तृत और समय-साध्य है। यहाँ जीवन पर आधारित 20 प्रसिद्ध संस्कृत श्लोक अर्थ सहित दिए गए हैं। शेष श्लोकों के लिए आप विशिष्ट ग्रंथों (जैसे—भगवद्गीता, चाणक्य नीति, उपनिषद्) का अध्ययन कर सकते हैं:

Table of Contents

Sanskrit Shlokas On Life


1. कर्मण्येवाधिकारस्ते… (भगवद्गीता 2.47)


अर्थ: तुम्हारा कर्म करने में ही अधिकार है, फल में नहीं। कर्म के फल के लिए मत जुड़ो, और कर्म न करने में भी मत लगो।


2. उद्यमेन हि सिध्यन्ति… (चाणक्य नीति)


अर्थ: मेहनत से ही काम सिद्ध होते हैं, सिर्फ इच्छा से नहीं। सोते हुए शेर के मुँह में हिरण स्वयं नहीं घुसते।


3. असतो मा सद्गमय… (बृहदारण्यक उपनिषद्)


अर्थ: असत्य से सत्य की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर, और मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो।


4. विद्या ददाति विनयं… (नीतिशतक)


अर्थ: विद्या विनम्रता देती है, विनम्रता से योग्यता मिलती है, योग्यता से धन प्राप्त होता है, धन से धर्म और फिर सुख मिलता है।


5. सुखार्थी वा त्यजेत विद्याम्… (हितोपदेश)


अर्थ: सुख चाहने वाला विद्या छोड़ दे, और विद्या चाहने वाला सुख। दोनों एक साथ नहीं मिलते।


6. यदा यदा हि धर्मस्य… (भगवद्गीता 4.7)


अर्थ: जब-जब धर्म का ह्रास होता है और अधर्म बढ़ता है, तब-तब मैं स्वयं को प्रकट करता हूँ।


7. अनित्यं सुखदुःखं… (योग वासिष्ठ)


अर्थ: सुख-दुख और जीवन अनित्य हैं। इसे जानकर विवेकी व्यक्ति सुख-दुख से नहीं जुड़ता।


8. क्षणशः कणशश्चैव… (महाभारत)


अर्थ: समय और धन के कण-कण का सदुपयोग करो। धन खत्म हो सकता है, पर विद्या कभी नहीं।


9. आत्मनः प्रतिकूलानि… (रामायण)


अर्थ: दूसरों के साथ वह व्यवहार न करो जो अपने लिए अप्रिय हो।


10. सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात्… (मनु स्मृति)


अर्थ: सत्य बोलो, पर प्रिय बोलो। अप्रिय सत्य या मिथ्या प्रिय न बोलो। यही सनातन धर्म है।


11. नास्ति विद्या समं चक्षुः… (हितोपदेश)


अर्थ: विद्या से बड़ी आँख नहीं, सत्य से बड़ा तप नहीं, राग से बड़ा दुख नहीं, और त्याग से बड़ा सुख नहीं।


12. दुर्जनः परिहर्तव्यः… (चाणक्य नीति)


अर्थ: दुर्जन से दूर रहो, चाहे वह विद्वान क्यों न हो। मणि धारण करने वाला साँप भी खतरनाक होता है।


13. वृक्षस्य छेदे पतिताः… (पंचतंत्र)


अर्थ: पेड़ कटने पर उसके पत्ते, फूल और फल गिर जाते हैं, पर वसंत आने पर वह फिर हरा हो जाता है। संयम रखो, कठिनाई स्थायी नहीं होती।


14. अहिंसा परमो धर्मः… (महाभारत)


अर्थ: अहिंसा सर्वश्रेष्ठ धर्म है, इंद्रिय नियम धर्म का सार है, सत्य परब्रह्म है, और ज्ञान सर्वोत्तम साधन है।


15. क्रोधो वै शत्रुः… (विष्णु पुराण)


अर्थ: क्रोध सबका शत्रु है, और मित्र सुख देता है। इसलिए क्रोध छोड़कर सदा सुख से रहो।


16. यथा चित्तं तथा वाचो… (योग वासिष्ठ)


अर्थ: जैसा मन, वैसी वाणी और जैसी वाणी, वैसा कर्म। सज्जनों का मन, वचन और कर्म एकसमान होते हैं।


17. न धनं न बन्धवः… (भर्तृहरि)


अर्थ: धन या रिश्ते नहीं, केवल विद्या समृद्धि देती है। वह भी निरंतर सेवा और लगन से मिलती है।


18. परोपकाराय फलन्ति… (सुभाषित रत्न)


अर्थ: वृक्ष दूसरों के लिए फल देते हैं, नदियाँ पानी बहाती हैं, गायें दूध देती हैं। यह शरीर भी परोपकार के लिए है।


19. श्रद्धावान् लभते ज्ञानम्… (भगवद्गीता 4.39)


अर्थ: श्रद्धावान, समर्पित और इंद्रिय-नियंत्रित व्यक्ति ज्ञान पाता है। ज्ञान से परम शांति मिलती है।


20. अनुदिनं मलिनत्वं… (भर्तृहरि)


अर्थ: यौवन जाते ही सुंदरता मलिन हो जाती है। कमल के भीतर का जल (सुंदरता) समय के साथ लुप्त हो जाता है।


अतिरिक्त श्लोकों के स्रोत:

  1. भगवद्गीता, उपनिषद्, रामचरितमानस
  2. चाणक्य नीति, पंचतंत्र, हितोपदेश
  3. मनु स्मृति, विष्णु पुराण, योग वासिष्ठ

यदि आपको किसी विशिष्ट विषय (जैसे—धैर्य, मित्रता, नैतिकता) पर अधिक श्लोक चाहिए, तो अवश्य बताएँ! 🙏 biographyrp.com

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