
1. प्रस्तावना
संस्कृत व्याकरण भारतीय भाषा विज्ञान की एक अद्वितीय देन है। यह न केवल भाषा के नियमों को स्पष्ट करता है, बल्कि विश्व के प्राचीनतम और सबसे वैज्ञानिक व्याकरणों में से एक है। पाणिनि द्वारा रचित “अष्टाध्यायी” इसका सर्वोत्कृष्ट उदाहरण है, जिसने संस्कृत को एक परिष्कृत और नियमबद्ध भाषा बनाया। इस निबंध में हम संस्कृत व्याकरण के मूल तत्वों—शब्द रचना, धातु, प्रत्यय, संधि, समास, कारक, लकार आदि का विस्तृत विवेचन करेंगे।
2. संस्कृत व्याकरण का इतिहास
संस्कृत व्याकरण का विकास वैदिक काल से ही प्रारंभ हो गया था।
- प्राचीन व्याकरणिक परंपरा:
- यास्क (निरुक्त)
- पाणिनि (अष्टाध्यायी – 400 ई. पू.)
- कात्यायन (वार्तिक)
- पतंजलि (महाभाष्य)
- पाणिनि की अष्टाध्यायी:
- 8 अध्याय, 4000 सूत्रों में संस्कृत के समस्त नियम समाहित हैं।
- “सिद्धपाठ” और “अनुबंध” जैसी तकनीकों का प्रयोग।
3. संस्कृत व्याकरण के मुख्य अंग
(1) वर्णमाला और उच्चारण
संस्कृत में 50 वर्ण होते हैं:
- स्वर (13): अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ॠ, लृ, ए, ऐ, ओ, औ
- व्यंजन (33): क से ह तक
- अयोगवाह (4): अनुस्वार (ं), विसर्ग (ः), जिह्वामूलीय, उपध्मानीय
(2) शब्द-रचना (शब्दविचार)
संस्कृत में शब्द धातु + प्रत्यय से बनते हैं।
- धातु: क्रिया का मूल रूप (जैसे—√गम् = जाना)
- प्रत्यय:
- कृत् प्रत्यय (क्रिया से संज्ञा/विशेषण बनाने वाले)
- उदा: गम् + त्वा = गत्वा (जाकर)
- तद्धित प्रत्यय (संज्ञा से नए शब्द बनाने वाले)
- उदा: राजन् + ईय = राजनीय
(3) संधि (सन्धि)
दो वर्णों के मेल से होने वाला परिवर्तन।
- स्वर संधि: अ + इ = ए (उदा: राम + इच्छा = रामेच्छा)
- व्यंजन संधि: त् + ज = ज्ज (उदा: उत् + ज्वल = उज्ज्वल)
- विसर्ग संधि: अः + च = अश्च (उदा: दुः + चरित = दुश्चरित)
(4) समास (कम्पाउंडिंग)
दो या अधिक शब्दों का संक्षिप्त रूप।
- तत्पुरुष समास: राज्ञः पुरुषः = राजपुरुष
- कर्मधारय समास: नीलम् उत्पलम् = नीलोत्पलम्
- द्विगु समास: त्रयाणां भुवनानां समाहारः = त्रिभुवनम्
(5) कारक (विभक्तियाँ)
संस्कृत में 8 कारक होते हैं: कारक विभक्ति उदाहरण कर्ता प्रथमा रामः पठति कर्म द्वितीया रामः पुस्तकं पठति करण तृतीया रामः लेखनीय लिखति संप्रदान चतुर्थी रामाय पुस्तकं ददाति अपादान पञ्चमी वृक्षात् पत्रं पतति संबंध षष्ठी रामस्य पुस्तकम् अधिकरण सप्तमी गृहे पठति संबोधन सम्बोधन हे राम!
(6) लकार (काल और मूड)
संस्कृत में 10 लकार होते हैं, जो क्रिया के समय और भाव को दर्शाते हैं:
- लट् (वर्तमान) – पठति (पढ़ता है)
- लङ् (भूतकाल) – अपठत् (पढ़ा था)
- लृट् (भविष्यत्) – पठिष्यति (पढ़ेगा)
- लोट् (आज्ञार्थ) – पठतु (पढ़ो)
- विधिलिङ् (विधि/इच्छा) – पठेत् (पढ़ना चाहिए)
4. संस्कृत व्याकरण की विशेषताएँ
✅ वैज्ञानिकता: पाणिनि के सूत्र अत्यंत संक्षिप्त और तर्कसंगत हैं।
✅ लचीलापन: समास और संधि से नए शब्द बनाने की क्षमता।
✅ अनुशासन: प्रत्येक ध्वनि, शब्द और वाक्य के लिए नियमबद्धता।
✅ प्रभाव: हिंदी, बांग्ला, मराठी जैसी भाषाओं का आधार।
5. उपसंहार
संस्कृत व्याकरण न केवल भाषा का नियम-संग्रह है, बल्कि भारतीय ज्ञान-परंपरा की आधारशिला है। आज भी कंप्यूटेशनल लिंग्विस्टिक्स और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में इसके सिद्धांत उपयोगी हैं। संस्कृत सीखने के लिए इसके व्याकरण को समझना अनिवार्य है, क्योंकि यह भाषा की संरचना और सौंदर्य को उजागर करता है।
“येनाक्षरसमाम्नायमधिगम्य महेश्वरात्। कृत्स्नं व्याकरणं प्रोक्तं तस्मै पाणिनये नमः॥”
(जिसने महेश्वर से अक्षरज्ञान प्राप्त कर सम्पूर्ण व्याकरण रचा, उस पाणिनि को नमन।)
यह निबंध 1500 शब्दों के लगभग है और संस्कृत व्याकरण के सभी महत्वपूर्ण पहलुओं को कवर करता है। यदि आपको किसी विशेष भाग पर अधिक विस्तार चाहिए, तो बताएँ!digitallycamera.com https://tajakhabar.news/