हिंदी भाषा का विकास पर निबंध | Hindi Bhasha ka Vikash par Nibandh

हिंदी भाषा का विकास पर निबंध | Hindi Bhasha ka Vikash par Nibandh ; यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण विषय है इसपर अक्सर बोर्ड की परीक्षाओं में निबंध लिखने को आता है । इसपर इस पर तरह से निबंध लिखेगें।

प्रस्तावना

हिंदी भाषा का विकास आर्यों के मूल भाषा संस्कृत से हुआ है यह एक आधुनिक आर्य भाषा है । आर्य भाषाओं का विकास भारतीय था बाहरी क्षेत्र में अलग-अलग पद्धति से हुआ है । भारतीय आर्य भाषा के विकास को तीन चरणों में बांटा गया है । जो निम्न लिखित रूप से हैं :

Hindi Bhasha ka Vikash par Nibandh

प्राचीन आर्यभाषाएं

प्राचीन आर्य भाषाओं का विकास लगभग 2000 ई. पू. से 500 ई. पू. तक माना गया है इसके अंतर्गत दो स्थितियां शामिल हैं । Hindi Bhasha ka Vikash par Nibandh

वैदिक संस्कृति (2000 से 1000 ई.)

लौकिक संस्कृत (1000 ई. से 500 ई.पू.)

मध्यकालीन आर्य भाषाएं

इन भाषाओं का विकास काल 5000 ई. से 1000 ई तक स्वीकार किया गया है इस भाग के अंतर्गत चार चरण मिलते हैं

. पालि (500 ई.पू. से ईसवी सन् के आरंभ तक)

• प्राकृत (ईसवी सन् के आरंभ से 500 ई. तक)

• अपभ्रंश तथा अवहट्ट (500 ई. से 1100 ई. तक)

आधुनिक आर्यभाषाएँ

इन भाषाओं के विकास का समय लगभग 1100 ई. से अभी तक माना जाता है। इनमें हिन्दी, बांग्ला, उड़िया, असमी, मराठी, गुजराती, पंजाबी तथा सिंधी जैसी भाषाएँ शामिल हैं।Hindi Bhasha ka Vikash par Nibandh

हिन्दी भाषा का विकास-क्रम

उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि हिन्दी एक आधुनिक आर्यभाषा है, जिसका विकास मूलतः प्राचीन आर्यभाषा संस्कृत से हुआ है। संस्कृत और हिन्दी के संपर्क सूत्र को स्थापित करने वाली भाषिक स्थितियों को हम मध्यकालीन आर्यभाषाएँ कहते हैं। अतः हिन्दी के विकास का अध्ययन मध्यकालीन आर्यभाषाओं से आरंभ करना उचित प्रतीत होता है।Hindi Bhasha ka Vikash par Nibandh

हिन्दी का उद्भव कब हुआ, इस पर भाषा – विज्ञानियों में गंभीर मतभेद हैं। कुछ का दावा है कि अपभ्रंश के विकास से ही हिन्दी का विकास मान लेना चाहिये तो दूसरे छोर पर कुछ अन्य का मत है कि पुरानी हिन्दी के विकास से पहले की स्थितियों को अपभ्रंश और अवहट्ट के रूप में स्वतंत्र माना जाना चाहिये और हिन्दी की शुरुआत पुरानी या प्रारंभिक हिन्दी से मानी जानी चाहिये।

वर्तमान भाषा – विज्ञान में सामान्यतः पुरानी हिन्दी से ही हिन्दी की शुरुआत माने जाने का प्रचलन है। इसका अर्थ है कि हिन्दी का आरंभ लगभग 1100 ई. में हो गया था। किंतु यह भी ध्यान रखना ज़रूरी है कि तब से आज तक की विकास- यात्रा कई अलग-अलग प्रवृत्तियों पर आधारित है। इस कारण हिन्दी के विकास को भी तीन चरणों में बाँटा जाता है :

1. प्राचीन हिन्दी ( 1100 ई. से 1350 ई. लगभग)

2. मध्यकालीन हिन्दी (1350 ई. से 1850 ई. लगभग)

3. आधुनिक हिन्दी (1850 ई. से अभी तक)

प्राचीन हिन्दी

प्राचीन हिन्दी, पुरानी हिन्दी तथा आरंभिक हिन्दी शब्द कुछ विवादों के बावजूद प्रायः समानार्थी शब्दों के रूप में स्वीकार कर लिये गए हैं। इस काल में हिन्दी का कोई निश्चित स्वरूप तो नहीं मिलता, लेकिन हिन्दी की बोलियों के स्वतंत्र विकास की पूर्वपीठिका जरूर दिखाई देती है। इस काल में हिन्दी भाषा अपभ्रंश के केंचुल को धीरे-धीरे छोड़कर हिन्दी की बोलियों के रूप में विकसित हो रही थी।

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मध्यकालीन हिन्दी

मध्यकालीन हिन्दी उस समय की भाषा है, जब पहली बार हिन्दी की बोलियाँ स्वतंत्र रूप से साहित्य के क्षेत्र में प्रयुक्त होने लगी थीं।इस काल में व्यावहारिक स्तर पर यद्यपि हिन्दी की सभी वर्तमान बोलियाँ विकसित हो चुकी थीं, किंतु साहित्यिक स्तर पर ब्रजभाषा और अवधी ने विकास की चरम स्थितियों को हासिल किया। इस युग में खड़ी बोली साहित्य के केंद्र में तो नहीं आ सकी, किंतु वह साहित्यिक कृतियों में किसी न किसी रूप में प्रायः व्यक्त होती रही।मध्यकाल में हिन्दी भाषा में अरबी तथा फारसी जैसे दो प्रमुख विदेशी भाषाओं के शब्दों का आगमन हुआ था, जिनका प्रभाव हिन्दी भाषा पर स्पष्ट रूप से दिखता है।जैसे- फारसी के शब्द: नापसंद, चश्मा, कुश्ती, सितार, सरकार, उम्मीदआदि। अरबी के शब्दः अमीर, अल्लाह, आदमी, शराब, दफ्तर, दुनिया आदि।Hindi Bhasha ka Vikash par Nibandh

आधुनिक हिन्दी

हिन्दी का आधुनिक काल हिन्दी भाषा का ही नहीं, हिन्दी साहित्य का भी आधुनिक काल है। इस काल में हिन्दी के स्वरूप में पहले के सभी कालों की तुलना में अधिक तीव्रता के साथ परिवर्तन होने शुरू हुए। सबसे पहले 19वीं शताब्दी में खड़ी बोली साहित्यिक भाषा के रूप में स्थापित हुई, उसके बाद हिन्दी राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम की संपर्क भाषा बनकर राष्ट्रभाषा के पद पर आसीन हुई।

आजादी मिलने के बाद उसे कुछ सीमाओं के साथ राजभाषा का पद मिला, फिर भारत सरकार के सहयोग से हिन्दी भाषा और देवनागरी लिपि को मानकीकृत बनाने के प्रयास किये गए तथा पिछले कुछ वर्षों में वैज्ञानिक तथा तकनीकी विकास जैसे कंप्यूटरीकरण आदि के संदर्भ में भी हिन्दी को विकसित करने के प्रयास किये गये हैं। Hindi Bhasha ka Vikash par Nibandh

राजभाषा हिन्दी की संवैधानिक स्थिति (Hindi Bhasha ka Vikash par Nibandh)

भारतीय संविधान के भाग 5,6 और 17 में राजभाषा संबंधी उपबंध हैं| भाग 17 का शीर्षक ‘राजभाषा’ है। इस भाग में c चार अध्याय हैं जो क्रमश: संघ की भाषा, प्रादेशिक भाषाओं मन्यावएवं न्यायालयों आदि की भाषा तथा विशेष विदेशों से संबंधित है। ये चारों अध्याय अनुच्छेद 341 से 151 के अंतर्गत समाहित है।

इनके अतिरिक्त अनुच्छेद 120 तथा 210 में संसद एवं विधानमंडलों की भाषा के संबंध में दिया गया है। राजभाषा संबंधी प्रावधान संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों में वर्णित है, जैसे-

● संविधान के अनुच्छेद 120, संसद में प्रयोग की जाने वाली भाषा से संबंधित है।

● संविधान के अनुच्छेद 120 (1) में कहा गया है- ‘संसद में कार्यहिन्दी में या अंग्रेजी में किया आएगा।’

● अनुच्छेद 210 के अनुसार, “राज्य के विधानमंडल में कार्य राज्य की राजभाषा या राजभाषाओं में या हिन्दी में या अंग्रेजी में कियाजाएगा।”

● अनुच्छेद 343 में कहा गया है, “संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी।” इसके अतिरिक्त “संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिये प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा।”

● संविधान के अनुच्छेद 344 के अंतर्गत व्यवस्था की गई है कि संविधान के आरंभ से पाँच वर्ष बाद राष्ट्रपति एक आयोग गठित करेगा, जो हिन्दी के प्रयोग के विस्तार पर सुझाव देगा, जैसे- किन कार्यों के लिये हिन्दी का प्रयोग किया जा सकता है, अंग्रेजी का प्रयोग कहाँ व किस प्रकार सीमित किया जा सकता है।

• अनुच्छेद 345 के अनुसार किसी राज्य का विधानमंडल विधि द्वारा उस राज्य में प्रयुक्त होने वाली भाषाओं या किन्हीं अन्य भाषाओं को या हिन्दी को शासकीय प्रयोजनों के लिये स्वीकार कर सकेगा। यदि किसी राज्य का विधानमंडल ऐसा नहीं कर पाए तो अंग्रेजी भाषा का प्रयोग यथावत् किया जाता रहेगा।

● अनुच्छेद 346 के अनुसार, संघ द्वारा निर्धारित भाषा एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच में तथा किसी राज्य और संघ की सरकार के बीच पत्र आदि की राजभाषा होगी। यदि दो या अधिक राज्य परस्पर हिन्दी भाषा को स्वीकार करना चाहें तो उसका प्रयोग किया जा सकेगा।

अनुच्छेद 347 के अनुसार, यदि किसी राज्य की जनसंख्या का पर्याप्त भाग यह चाहता हो कि उसके द्वारा बोली जाने वाली भाषा को उस राज्य में (दूसरी भाषा के रूप में) मान्यता दी जाए और इसके लिये लोकप्रिय मांग की जाए तो राष्ट्रपति यह निर्देश दे सकेगा कि ऐसी भाषा को भी उस राज्य में सर्वत्र या उसके किसी भाग में ऐसे प्रयोजन के लिये जो वह विनिर्दिष्ट करे, शासकीय मान्यता दी जाए।

• अनुच्छेद 348 में प्रावधान किया गया है कि जब तक संसद विधि द्वारा कोई और उपबंध न करे, तब तक उच्चतम न्यायालय और प्रत्येक उच्च न्यायालय में सभी कार्यवाहियाँ अंग्रेजी भाषा में होंगी।Hindi Bhasha ka Vikash par Nibandh

इसी अनुच्छेद के खंड 2(1) के उपखंड (क) में यह भी प्रावधान किया गया है कि किसी राज्य का राज्यपाल राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से उस राज्य के उच्च न्यायालय में ‘हिन्दी भाषा या उस राज्य के शासकीय प्रयोजनों के लिये प्रयोग होने वाली किसी अन्य भाषा को प्रयोग हेतु प्राधिकृत (आदेश जारी कर सकेगा।

.अनुच्छेद 349 प्रावधान किया गया कि अनुच्छेद 348 के खड़ (1) में उल्लिखित किसी प्रयोजन के लिये प्रयोग की जाने वाली भाषा के लिये उपबंध करने या संशोधन करने संबंधी कोई विधेयक संसद के किसी सदन में राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति के उपरांत ही लाया जा सकेगा तथा राष्ट्रपति अपनी अनुमति अनुच्छेद 344 के खंड (1) के अधीन गठित आयोग की सिफारिशों पर और अनुच्छेद के खंड (4) के अधीन गठित समिति के प्रतिवेदन पर विचार करने के उपरांत ही देगा अन्यथा नहीं।

• अनुच्छेद 350 में प्रावधान किया गया है कि प्रत्येक व्यक्ति किसी व्यथा के निवारण के लिये संघ या राज्य के किसी अधिकारी या प्राधिकारी को यथास्थिति संघ में या राज्य में प्रयोग होने वाली किसी भाषा में अभ्यावेदन देने का हकदार होगा। साथ ही अनुच्छेद 350 (क) में प्रावधान किया गया है कि प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की सुविधा उपलब्ध हो तथा अनुच्छेद 350 (ख) में प्रावधान किया गया है कि भाषायी अल्पसंख्यक वर्गों के लिये एक विशेष अधिकारी होगा, जिसकी नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा की जाएगी।

• अनुच्छेद 351 में कहा गया है- “संघ का यह कर्तव्य होगा कि वह हिन्दी भाषा का प्रसार बढ़ाए, उसका विकास करे, ताकि वह भारत की सामाजिक संस्कृति के सभी तत्त्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके और उसकी प्रकृति में हस्तक्षेप किये बिना हिन्दुस्तानी में और आठवीं अनुसूची में बताई गई अन्य भाषाओं के प्रयुक्त रूप, शैली और पदों को आत्मसात् करते हुए और जहाँ आवश्यक या वांछनीय हो, वहाँ उसके बाद शब्द भंडार के लिये मुख्यतः संस्कृत से और गौणतः अन्य भाषाओं से शब्द ग्रहण करते हुए उसकी समृद्धि सुनिश्चित करे। Hindi Bhasha ka Vikash par Nibandh

“भारतीय संविधान में वर्णित भाषाएँ संविधान में अनुच्छेद 344 (1) और अनुच्छेद 351 में आठवीं अनुसूची में विनिर्दिष्ट भारतीय भाषाओं का संदर्भ आया है, जो संख्या में बाईस हैं-

1.असमिया12. बंगाली (बांग्ला)
2. उड़िया (ओड़िया)13. मणिपुरी
3. उर्दू14. मराठी
4. कश्मीरी15. मलयालम
5. कन्नड़16. संस्कृत
6. कोंकणी17. सिंधी
7. गुजराती18. हिन्दी
8. तमिल19. बोडो
9. तेलुगु20. मैथिली
10. नेपाली21. डोगरी
11. पंजाबी22. संथाली
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• 21 वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1967 के तहत ‘सिंधी’ को जोड़ा गया।

• 71 वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 के तहत ‘कोंकणी’,’मणिपुरी’ एवं ”नेपाली’ को जोड़ा गया। 92वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2003 के तहत ‘डोगरी’, ‘बोडो’,’मैथिली’ एवं ‘संथाली’ को जोड़ा गया।

● वर्तमान में 8वीं अनुसूची में 22 भाषाएँ वर्णित हैं।

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राजभाषा, राष्ट्रभाषा एवं संपर्क भाषा

राजभाषा का तात्पर्य भारत की स्वाधीनता प्राप्ति से पहले हिन्दी में राजभाषा शब्द का प्रयोग प्रायः नहीं मिलता। सबसे पहले सन् 1949 में भारत के महान नेता श्री राजगोपालाचारी ने भारतीय संविधान सभा में ‘नेशनल लैंग्वेज’ (National Language) के समानांतर ‘स्टेट लैंग्वेज’ (State Language) शब्द का प्रयोग इस उद्देश्य से किया कि ‘राष्ट्रभाषा’ (National Language) और ‘राजभाषा’ (State Language) में अंतर रहे और दोनों के स्वरूप को अलग करने वाली विभेदक रेखा को समझा जा सके। संविधान सभा की कार्यवाही के हिन्दी प्रारूप में ‘स्टेट लैंग्वेज’ (State Language) का हिन्दी अनुवाद ‘राजभाषा’ किया गया और इस प्रकार पहली बार यह शब्द प्रयोग में आया।

‘राजभाषा’ शब्द का तात्पर्य है- ‘राजा’ (शासक) अथवा राज्य (सरकार) द्वारा प्राधिकृत भाषा भारतीय लोकतंत्र में शासन या सरकार का गठन संविधान की प्रक्रिया के अंतर्गत होता है अतः दूसरे शब्दों में ‘राजभाषा’ का तात्पर्य है संविधान द्वारा सरकारी कामकाज, प्रशासन, संसद और विधानमंडलों तथा न्यायिक कार्यकलापों के लिये स्वीकृत भाषा। Hindi Bhasha ka Vikash par Nibandh

राष्ट्रभाषा: राष्ट्रभाषा से तात्पर्य किसी देश की उस भाषा से है, जिसे वहाँ के अधिकांश लोग बोलते हैं तथा जिसके साथ उनका सांस्कृतिक तथा भावनात्मक जुड़ाव होता है। उदाहरण के लिये जर्मनी की राष्ट्रभाषा जर्मन है, इंग्लैंड की इंग्लिश तथा फ्राँस की फ्रेंच भारत जैसे बहुभाषी राष्ट्रों के सामने संकट यह है कि वे किस भाषा को राष्ट्रभाषा कहें? यदि वे किसी एक भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा देते हैं तो शेष भाषाओं के प्रयोक्ताओं को भेदभाव महसूस होता है और अगर किसी भाषा को यह दर्जा नहीं दिया जाता है तो राष्ट्र की एकता की संभावनाएँ कमजोर हो जाती हैं।

स्वाधीनता संग्राम के दौरान लगभग सभी नेताओं ने आपसी सहमति से तय किया था कि हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा है और उसी में स्वाधीनता संग्राम चलाया जाना चाहिये। स्वाधीनता प्राप्ति के बाद इस विषय पर विवाद हुआ और तय किया गया कि किसी एक भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा देने की बजाय भारत की सभी प्रमुख भाषाओं को राष्ट्रीय भाषाओं का दर्जा दिया जाना चाहिये। हिन्दी को भारत की संपर्क भाषा के तौर पर सम्मान दिया जाना चाहिये, न कि राष्ट्रभाषा कहकर विवादों को आमंत्रित किया जाना चाहिये।

संपर्क भाषाः स्वाधीनता प्राप्ति के बाद राजभाषा और राष्ट्रभाषा के अतिरिक्त एक अन्य शब्द संपर्क भाषा’ का प्रयोग हिन्दी के संबंध में अक्सर होने लगा है। ऐतिहासिक परिस्थितियों का विश्लेषण करते हुए इसे समझना बेहतर होगा। संपर्क भाषा का अर्थ होता है ऐसी भाषा जो दो विभिन्न भाषिक क्षेत्रों के बीच संपर्क सूत्र का कार्य करे। स्वाभाविक रूप से हिन्दी सारे देश में संपर्क भाषा का कार्य करती रही है। यह भारत की एकमात्र भाषा है, जिसे 40% से अधिक भारतीय प्रथम भाषा के रूप में तथा 30% से अधिक भारतीय द्वितीय भाषा के रूप में प्रयोग करते हैं। इस कारण हिन्दी भाषा भारत के जनसाधारण की संपर्क भाषा मानी जाती है। स्वाधीनता संग्राम में देश के हर कोने में हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने की मांग इसलिये उठाई गई थी कि हिन्दी संपर्क भाषा के रूप में जनसामान्य द्वारा स्वीकृत थी।

संपर्क भाषा एवं राष्ट्रभाषा में अंतर है। जिन देशों में भाषिक वैविध्य कम होता है, वहाँ संपर्क भाषा की आवश्यकता कम होती है तथा राष्ट्रभाषा ही संपर्क भाषा का कार्य करती है। भारत जैसे बहुभाषी देश में संपर्क भाषा और राष्ट्रभाषा में अलग संबंध बनते हैं। स्वाधीनता संग्राम में पूरे भारत में हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया गया था, किंतु स्वाधीनता प्राप्ति के बाद अहिन्दीभाषियों ने इस शब्द पर आपत्ति प्रकट की। उनका तर्क यह था कि यदि हिन्दी राष्ट्रभाषा है तो क्या बांग्ला, समिल, कन्नड़ और मराठी आदि भाषाएँ राष्ट्रेतर या राष्ट्र विरोधी भाषाएँ हैं? उन्होंने मांग की कि भारत की सभी भाषाओं को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया जाए।

हिन्दी को जो विशेष दर्जा देने की आवश्यकता है. वह राष्ट्रभाषा का नहीं अपितु संपर्क भाषा का है।वर्तमान समय में प्रायः राजनीतिक आधार पर यह विचार स्वीकार किया जा चुका है कि हिन्दी भारत की संपर्क भाषा है। वह भारत की राष्ट्रभाषा भी है, किंतु उसके साथ-साथ संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल सभी भाषाएँ राष्ट्रभाषाएँ अथवा राष्ट्र की भाषाएँ हैं। जहाँ तक राजभाषा का प्रश्न है, वह संवैधानिक रूप से केंद्र स्तर पर हिन्दी है तथा राज्यों के स्तर पर उनकी अपनी भाषाएँ हैं।

राजभाषा हिन्दी के प्रयोग की प्रगति

संविधान के लागू होने के बाद राजभाषा के प्रयोग के संबंध में जो प्रमुख घटनाएँ घटीं , वे इस प्रकार हैं-

राष्ट्रपति का आदेश

1955 में यह आदेश जारी किया गया कि जहाँ तक संभव हो. जनता के साथ पत्र-व्यवहार में तथा प्रशासनिक कार्यों में हिन्दी के प्रयोग को अंग्रेजी के साथ बढ़ावा दिया जाए, साथ ही यह बात भी लिख दी जाए कि अंग्रेजी में लिखित सामग्री ही प्रामाणिक मानी जाएगी। Hindi Bhasha ka Vikash par Nibandh

राजभाषा आयोग

1955 में राष्ट्रपति ने संविधान के प्रावधानों के अनुसार इस आयोग की स्थापना की। इस आयोग ने राजभाषा के प्रयोग के बारे में जो सुझाव दिये , उनमें से प्रमुख इस प्रकार हैं-

• पारिभाषिक शब्दावली निर्माण की गति तीव्र होनी चाहिये। अंतर्राष्ट्रीय शब्दावली को थोड़े हेर-फेर के साथ स्वीकार कर लेना चाहिये।

• हिन्दी क्षेत्र के विद्यार्थियों को एक और भाषा, विशेषतः दक्षिण भारत की भाषा, अवश्य सीखनी चाहिये।

• चौदह वर्ष की आज तक प्रत्येक विद्यार्थी को हिंदी का ज्ञान करा देना चाहिए ।

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