Satsangati Par Nibandh | सत्सङ्गतिः कथय किं न करोति पुंसाम्

Satsangati Par Nibandh

Satsangati Par Nibandh | सत्सङ्गतिः कथय किं न करोति पुंसाम् ,सत्संगति पर निबंध sanskrit, सतां सद्भिःसंगः कथमपि हि पुण्येन भवति । सतां जनानां सङ्गतिः ‘सत्सङ्गतिः’ कथ्यते। सत्सङ्गतिः जनानां सर्वकार्य साधिका इति सुनिश्चितम्। मानवः सामाजिक विशेषः अतः समाजं बिना तस्य किमपि महत्त्वं न विद्यते ।

Satsangati Par Nibandh

अर्थ :-मुझे बताओ कि संतों के साथ पुरुषों का क्या संबंध नहीं है, क्योंकि संत की संगति किसी तरह एक गुण है। संत लोगों की संगति को ‘ संत संगति’ कहा जाता है यह निश्चित है कि अच्छी संगति लोगों के लिए सब कुछ पूरा करती है। मनुष्य सामाजिक विशेष हैं और इसलिए समाज के बिना उनका कोई महत्व नहीं है ।

सत्संगत्या जनः समाजे समुन्नतं पदं प्राप्नोति । सुदामा श्रीकृष्ण सखा आसीत्। सुग्रीवविभीषणादयो रामसङ्गात् श्रेयः प्राप्नुवन्। श्रीकृष्णस्य संगतिकारणेन एवं सुदामा दारिद्र्यं परि परमैश्वर्यशाली अभवत् अजामिलोऽपि सतां सङ्गात् नारायणलोके जगाम ऋषीणां संगत्या व्याधोऽपि ऋषिवाल्मीकिः अभवत्। Satsangati Par Nibandh

अर्थ :-धर्मात्माओं की संगति करने से व्यक्ति समाज में उच्च पद प्राप्त करता है। सुदामा श्रीकृष्ण के मित्र थे। सुग्रीव विभीषण और अन्य लोगों को राम की संगति से लाभ हुआ कृष्ण की संगति के कारण, इस प्रकार सुदामा दरिद्रता पर परम धनी हो गए यहाँ तक कि अजामिल भी ऋषियों की संगति से नारायण की दुनिया में चले गए।Satsangati Par Nibandh

मानवः सज्जनैः सह सज्जनतां दुर्जनैः सह दुर्जनत्वम् च उपति । संगत्या विद्या वृद्धिर्भवति कीर्तिश्च वर्धते। दुर्जनानां संसर्ग बुद्धिर्दूषिता भवति कीर्तिः नश्यति च बालकः दुर्जनैः सह सङ्गतिः कदापि न कार्या सज्जनानां मार्गमनुसरन् को नु समु शिखरं न परिचुम्बति। सत्संगत्या मूर्खोऽपि विद्यावैभवेन विभाति, दुर्जनोऽपि सज्जनतां सम्प्राप्नोति, कुमार्गाद् सद्मार्गे समायति ।

अर्थ :-मनुष्य अच्छे से अच्छा और बुरे से बुरा बनता है। संगति से विद्या बढ़ती है और कीर्ति बढ़ती है। दुष्टों की संगति से बुद्धि भ्रष्ट होती है और यश का नाश होता है बालक को कभी भी दुष्टों की संगति नहीं करनी चाहिए धर्म के मार्ग पर चलते हुए जो शिखर शिखर को नहीं चूमता धर्मात्मा की संगति से मूर्ख भी ज्ञान की महिमा से प्रकाशित होता है और दुष्ट व्यक्ति भी पुण्य को प्राप्त होता है और दुष्ट मार्ग से सत्य मार्ग की ओर मुड़ जाता है।Satsangati Par Nibandh

“जाड्यं धियो हरति सिञ्चति वाचि सत्यं।मानोन्नतिं दिशति पापमपाकरोति ॥

चेतः प्रसादयति दिक्षु तनोति कीर्तिसत्संगतिः कथय किं न करोति पुंसाम् ॥

अर्थ :-मूर्खता मन को हर लेती है और सत्य को मुंह में पानी पिलाती है। यह किसी के आत्म-सम्मान को बढ़ाता है और पाप को दूर करता है। यह मन को प्रसन्न करता है और सभी दिशाओं में कीर्ति फैलाता है। मुझे बताओ कि पुरुषों के लिए अच्छी संगति क्या नहीं करती है।

अतः सत्संगतिः मानवस्य मनोवृत्तिं परिवर्तयति। अनया पापोऽपि धर्मनिष्ठाः भवति। नलिनीपत्रस्थिताः जलकणाः मौक्तिकघुतिम् आवहन्ति ।

अर्थ ;- अतः अच्छी संगति मनुष्य के दृष्टिकोण को बादल देती है । इससे पापी भी धर्मी हो जाता है । जैसे कमल के पत्तों पर पानी के कण मोती की तरह चमकते हैं ।

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