छात्र जीवनम् संस्कृत में निबंध | Chatra Jiwanam

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छात्र जीवनम् संस्कृत में निबंध

ब्रह्मचर्य, गार्हस्थ्यं, वानप्रस्थ, संन्यासश्चेति चत्वारः आश्रमाः सन्ति। ब्रह्मचर्याश्रमे बालकाः गुरुं समीपं गत्वा विद्याया अध्ययनं कुर्वन्ति। स एव कालः विद्यार्थीजीवनम् कथ्यते । अस्मिन् आश्रमे छात्राः विद्याध्ययनं कुर्वन्ति स्म। विद्यार्थिजीवनम् अतिरमणीयं अस्ति। मानवजीवनस्य कोऽपि भागः तादृशो नास्ति, यो विद्यार्थिजीवनस्य साम्यं कुर्यात् । एतस्मिन् बाल्यजीवने लवणतैलयोः चिन्ता न भवति नापि स्वपालनपोषणयोः । अस्मिन् काले बालः चिन्तारहितं भवति ।

अधुना विद्यार्थिजीवनम् शुल्कं दत्वा पठन्ति, परन्तु प्राचीनकाले विद्यार्थिनः गुरो सेवां कृत्वा एव पठन्तिस्म । वर्तमानकालस्य विद्यार्थिनं जीवनं बाह्याडम्बरपूर्णमस्ति । ते यथा कथञ्चि परीक्षां समुत्तीर्य कुत्राऽपि भृत्यपदं प्राप्य दग्धोदरपूर्णं भूत्वा स्वाध्ययनस्य कृतार्थतां मन्यन्ते। ते येषु शास्त्रेषु परीक्षां समुत्तरन्ति तद्विषयकं पर्याप्त ज्ञानमपि न सम्पादयन्ति । अर्थादिबोधम् उपेक्ष्य ग्रन्थाक्षराण्यव रटन्तस्ते वस्तुतः पुस्तककीटाः एव सन्ति। आधुनिक विद्यार्थिजीवने संशोधनं आवश्यकम् अस्ति । येन विद्यार्थिनः स्वकर्त्तव्य कृत्वा गुरुभक्ताः भवेयुः बाह्याडम्बरं च परित्यज्य दत्ताबधानाः विद्या पठेयुः । यदैव ते शरीरसुखं परित्यज्य विद्याध्ययनं च करिष्यन्ति तदैव विद्वांसः भविष्यन्ति । यतो हि सुखार्थिभिः विद्यादुष्प्राप्या तथा चोक्तम्-

Chatra Jiwanam

सुखार्थिनः कुतो विद्या विद्यार्थिनः कुतो सुखम्।

सुखार्थी वा त्यजेद् विद्या विद्यार्थी वा त्यजेत् सुखम् ॥

Chatra Jiwanam का अर्थ हिन्दी में

चार आश्रम हैं: ब्रह्मचर्य, गृहस्थ जीवन, वन जीवन और त्याग। ब्रह्मचारी आश्रम में बच्चे गुरु के पास जाकर विद्या सीखते हैं। वह समय विद्यार्थी जीवन कहलाता है। इस आश्रम में विद्यार्थी अध्ययन करते थे। विद्यार्थी जीवन बहुत सुखद होता है। मानव जीवन का ऐसा कोई भाग नहीं है जिसकी तुलना विद्यार्थी के जीवन से की जा सके। इस बाल्यावस्था में न नमक-तेल की चिन्ता रहती है और न अपने पालन-पोषण की इस दौरान बच्चा चिंता से मुक्त होता है।
आजकल विद्यार्थी शुल्क लेकर अध्ययन करते हैं, परन्तु प्राचीन काल में विद्यार्थी अपने गुरुजनों की सेवा करके ही अध्ययन करते थे। एक छात्र का जीवन आज बाहरी घमंड से भरा हुआ है। वे किसी तरह परीक्षा पास कर कहीं नौकर का पद पा लेते हैं और पेट भरा हुआ महसूस करते हैं और उनकी पढ़ाई पूरी हो जाती है। वे उन विषयों का पर्याप्त ज्ञान भी प्राप्त नहीं करते हैं जिनमें वे परीक्षा उत्तीर्ण करते हैं। जो लोग अर्थ और अन्य चीजों की समझ की उपेक्षा करते हैं और पाठ के अक्षरों को याद करते हैं, वे वास्तव में किताबी कीड़ा हैं , आधुनिक विद्यार्थी जीवन में शोध आवश्यक है। इससे छात्र अपना कर्तव्य निभाने और शिक्षक के प्रति समर्पित हो सकेंगे और बाहरी पाखंड को त्यागकर उन्हें दिए गए ज्ञान का अध्ययन कर सकेंगे। जब वे शरीर के सुखों को छोड़कर ज्ञान का अध्ययन करेंगे तभी वे विद्वान बनेंगे। क्योंकि सुख चाहने वालों को ज्ञान प्राप्त करना कठिन होता है, ऐसा कहा जाता है:-

सुख चाहने वालों के लिए ज्ञान कहाँ है ज्ञान चाहने वालों के लिए सुख कहाँ है?

सुख चाहने वाले को ज्ञान त्याग देना चाहिए और ज्ञान चाहने वाले को सुख त्याग देना चाहिए।
Chatra Jiwanam

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